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चित्र-परिचय-14
Illustration No. 14
कायोत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान आवश्यक कायोत्सर्गप्रतिज्ञा सूत्र
___ कायोत्सर्ग का अर्थ है-स्व शरीर से ममता-मूर्छा भाव को त्याग कर ध्यान-मुद्रा में स्थित " रहते हुए आत्मचिंतन करना अथवा अरिहंतों-भगवंतों की स्तुति करना।
- प्रथम चित्र में साधक गुरुदेव से कायोत्सर्ग में प्रवेश की अनुमति प्राप्त कर रहा है। - तीसरे. चौथे और पांचवें चित्र में कायोत्सर्ग की तीन विधियां अथवा आसनों को दर्शाया गया है। - दसरा चित्र प्रतीकात्मक है जिसमें बताया गया है कि जैसे शरीर-शुद्धि के लिए जल अनिवार्य
है, वैसे ही आत्म-शुद्धि के लिए कायोत्सर्ग अनिवार्य है। प्रत्याख्यान-प्रतिज्ञा सूत्र
प्रत्याख्यान का अर्थ है-त्याग करना। प्रत्याख्यान आत्म-शुद्धि का सबल और सशक्त साधन है। नवकारसी, पोरसी से लेकर आयंबिल, उपवास एवं सुदीर्घ तपस्याओं के प्रत्याख्यान द्वारा साधक अपनी आत्मा से पाप-मलों को विलग करता है।
इनसैट चित्रों में चतुर्विध आहार (चार प्रकार की भोज्य सामग्री) को दर्शाया गया है।
छठे चित्र में शिष्य गुरु से प्रत्याख्यान की प्रतिज्ञा अंगीकार कर रहे हैं। ___ सातवें चित्र में साधक गुरु की अनुपस्थिति में स्वयं प्रत्याख्यान की प्रतिज्ञा अंगीकार कर रहा है।
Kayotsarg & Pratyakhayan Sutra Sutra Regarding Resolve for Kayotsarg
Kayotsarg means to detach oneself from attachment for ones body and then to meditate on the self or meditate on praise for Arihantas.
In the first illustration, the practiser seeks permission from the spiritual master to enter in Kayotsarg.
In the third, fourth and fifth illustrations, the three procedure or postures of Kayotsarg have been depicted.
The second illustration seems as a model. It is mentioned therein that just as water for purification of the body, it is essential of discard excretion. Similarly Kayotsarg is essential for purification of soul. Sutra regarding Resolve for Pratyakhayan
Pratyakhyan means to avoid, to discard. It is the important method of selfpurification.
The practiser removes the dirt of sin from his soul by provinces such as Navkarsi upto ayambil, fast for a day and long-duration fasts.
In insets illustration, four types of articles of consumption have been depicted.
In the sixth illustration, the disciple is accepting the resolve of avoiding certain acharyas.
In the seventh illustration, in the absence of the guru, his disciple is himself undertaking the resolve of avoiding certain articles of consumption.