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________________ पंचम अध्ययन : कायोत्सर्ग आमुख : 'कायोत्सर्ग' आवश्यक का पंचम अंग है। काया और उत्सर्ग-इन दो शब्दों संयोग से 'कायोत्सर्ग' शब्द बना है जिसका अर्थ है- शरीर का त्याग। कायोत्सर्ग शब्द का यह स्थूल अर्थ है। जीवित रहते हुए शरीर का त्याग संभव नहीं है । प्रस्तुत संदर्भ में कायोत्सर्ग का भाववाची अर्थ है- शारीरिक आसक्ति और चंचलता का त्याग करना । 'शरीर' ममत्व का प्रधान केन्द्र है। 'जीव जितने भी पाप करता है, जितनी भी क्रियाएं करता है, उनमें शारीरिक मोह की प्रमुखता होती है। कायोत्सर्ग द्वारा साधक शरीर के मोह और चंचलता पर विजय प्राप्त कर लेता है। चतुर्थ आवश्यक ‘प्रतिक्रमण' द्वारा साधक अतिचारों की आलोचना करता है । उसके बाद भी आत्मा रूपी वस्त्र पर कुछ मैल शेष रह जाता है । उसी मैल को आत्मा रूपी वस्त्र से दूर करने के लिए, विशिष्ट शुद्धि के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। कायोत्सर्ग से आत्मा शुद्ध, सुनिर्मल और भार - रहित हो जाती है। गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा काउसग्गेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? भगवन्! कायोत्सर्ग से जीव को किस गुण की प्राप्ति होती है ? भगवान् ने फरमाया काउस्सग्गेणं तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वय हियए ओहरियभरुव्व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहंसुहेणं विहर । - उत्त. २९/१२ गौतम! कायोत्सर्ग से जीव अतीत और वर्तमान काल के अतिचारों का शोधन करता है। प्रायश्चित्त से विशुद्ध होकर जीव भार से मुक्त हुए भारवाहक के समान आनन्द का अनुभव करता है। पंचम अध्ययन : कायोत्सर्ग // 162 // Avashyak Sutra
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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