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________________ पांच पदों की वन्दना अरिहंत वन्दना नमूं श्री अरिहन्त, कर्मों का किया अन्त । हुआ सो केवलवन्त, करुणा भण्डारी है। अतिशय चौंतीस धार, पैंतीस वाणी उच्चार । समझावे नर-नार पर उपकारी है। शरीर सुन्दराकार, सूरज सो झलकार, गुण हैं अनन्तसार, दोष परिहारी है। कहत है तिलोकरिख, मन-वच - काया करी । झुक-झुक बारम्बार, वन्दना हमारी है ॥1॥ नमो अरिहंताणं- पहले पद श्री अरिहन्त महाराज चौंतीस अतिशय, 35 वाणी के गुणों सहित विराजमान, महाविदेह क्षेत्र में जयवन्त विचरे श्री सीमन्धर स्वामी, श्री युगमन्धर स्वामी, श्री बाहु स्वामी, श्री सुबाहु स्वामी, श्री सुजात स्वामी, श्री स्वयंप्रभ स्वामी, श्री ऋषभानन स्वामी, श्री अनन्तवीर्य स्वामी, श्री सूरप्रभ स्वामी, श्री वज्रधर स्वामी, श्री विशालधर स्वामी, श्री चन्द्रानन स्वामी, श्री चन्द्रबाहु स्वामी, श्री भुजंग स्वामी, श्री ईश्वर स्वामी, श्री नेमप्रभु स्वामी, श्री वीरसेन स्वामी, श्री महाभद्र स्वामी, श्री देवयश स्वामी, श्री अजितवीर्य स्वामी, जघन्य 20, उत्कृष्ट 160 तथा 170 तीर्थंकर अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, अनन्त बल, देव - दुन्दुभी, भामण्डल, स्फटिक सिंहासन, अशोक वृक्ष, पुष्प वृष्टि, दिव्य ध्वनि, छत्र धरे, चामर वींजे, इन 12 गुणों से विराजमान, चौंसठ इन्द्रों के पूजनीय जघन्य दो करोड़, उत्कृष्ट नौ करोड़ केवली, केवल ज्ञान, केवल दर्शन सहित, 18 दोषों से रहित, सर्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के जानकार, इत्यादि अनेक गुणों सहित विराजमान जिन महाराजों को मेरी भाव-वन्दना नमस्कार हो। ऐसे अरिहन्त भगवन्त महाराज ! आपकी दिवस - सम्बन्धी अविनय - आशातना हुई हो तो 1008 बार तिक्खुत्तो के पाठ से नमस्कार करता हूं। आप मांगलिक हो, उत्तम हो, आपका इस भव में पर- भव में शरणा हो ।।1।। Obeisance to five categories of soul Obeisance to ARIHANTAS I bow to Arihantas. They have shed destructive karmas and hence attained perfect knowledge. They are full of compassion. They possess thirty four unique virtues and thirty five special traits of speech. They provide true knowledge to the चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण // 150 // Avashyak Sutra
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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