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तं धम्मं सद्दहामि, पत्तियामि, रोएमि, फासेमि, पालेमि, अणुपामि ।
तं धम्मं सद्दहंतो, पत्तियंतो, रोयंतो, फासंतो, पालंतो, अणुपालंतो। तस्स धम्मस्स केवल पण्णत्तस्स अब्भुट्ठिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए ।
भावार्थ : जिन भगवान् द्वारा कहे गए उस धर्म पर मैं श्रद्धा करता हूं, प्रतीति करता हूं, रुचि करता हूं, उसकी स्पर्शना करता हूं, पालना करता हूं, एवं विशेष रूप से परिपालना करता
हूं।
उस धर्म की श्रद्धा करता हुआ, प्रतीति करता हुआ, रुचि करता हुआ, स्पर्श करता हुआ, पालन और अनुपालन करता हुआ - केवलियों द्वारा कहे गए उस धर्म की आराधना के लिए पूर्णतः उद्यत होता हूं, और विराधना से पूर्णत: विरत (निवृत्त) होता हूं।
Exposition: I have full faith in the dharma enunciated by the omniscient. I love it, I like it. I deal it in my life. I accept it in my life. I follow it meticulously.
While doing it, I am fully devoted to the practices as ordained by the omnicients. I totally avoid any disrespect towards them.
असंजम परियाणामि, संजमं उवसंपज्जामि । अबंभं परियाणामि, बंभं उवसंपज्जामि । अकप्पं परियाणामि, कप्पं उवसंपज्जामि । अण्णाणं परियाणामि, णाणं उवसंपज्जामि । अकिरियं परियाणामि, किरियं उवसंपज्जामि । मिच्छत्तं परियाणामि, सम्मत्तं उवसंपज्जामि। अबोहिं परियाणामि बोहिं उवसंपज्जामि । अम्मग्गं परियाणामि, मग्गं उवसंपज्जामि |
जं संभरामि, जं च ण संभरामि, जं पडिक्कमामि, जं च ण पडिक्कमामि, तस्स सव्वस्स देवसियस्स अइयारस्स पडिक्कमामि ।
भावार्थ : मैं असंयम को ज्ञ परिज्ञा ( हेय - त्याग करने योग्य, ज्ञेय - जानने योग्य, उपादेय-आचरण करने योग्य पदार्थों को स्वरूपतः जानना) से जानता हूं और प्रत्याख्यान परिज्ञा से उसका त्याग करता हूं, तथा संयम को स्वीकार करता हूं। अब्रह्मचर्य को जानकर त्यागता हूं और ब्रह्मचर्य को स्वीकार करता हूं। अकल्प्य (साधु के लिए निषिध आचरण) को जानकर त्यागता हूं और कल्प्य को स्वीकार करता हूं। अज्ञान को जानकर त्यागता हूं और ज्ञान को स्वीकार करता हूं। अक्रिया (नास्तिकता) को जानकर त्यागता हूं और क्रिया (आस्तिकता) को स्वीकार करता हूं। मिथ्यात्व को जानकर त्यागता हूं और सम्यक्त्व को स्वीकार करता हूं। चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण
Avashyak Sutra
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