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तैंतीस आशातना सूत्र - 2
श्रुत की आशानता
सबकाल के ही अधीन है। मनुष्य भला कर ही क्या सकता है।
नाग
साधारण बस्या सिखाएंगे? जो
आत्मा एक है तो जीव-गात्त्वादि की ये विभिन्न कल्पनाएं क्यों?
बड़ी सत्य
भगवती
काल की आशातना
सर्व प्राण भूत सत्त्व आशातना
श्रुतदेवता की आशातना
(1) पपी
जवाइन गुजय पाटों को जागोजोलामा
वाचनाचार्य की आशातना
विनयभार से रहित होकर पन्त
उगमेरा विग्गमेडया विणोड़वा
एक सूत्र का पाठ दूसरे सूत्र हे पाठ से मिलाकर पड़ना
मला एक वस्तु उत्पति
fresh विनय तीनों ही धर्म से
मग-मान-माय बी एखापता के बिना पड़ना 0ोमतीन
अक्षर कम करके सुर पड़ना अरणस्परजहार बड़ाकर पड़ना
तो मोहै।
गएण
सुठुदिन्नं
9AA
दुठ्ठपडिकिय
अकाले कओ समाओ
दुष्ट भाव से ज्ञान ग्रहण
सुयोग्य शिष्य की उपेक्षा कर अयोग्य शिष्य को ज्ञान-दान
अकाल में स्वाध्याय करना
। असमाइए सज्झाय
काले नकओ समाय
समाइए न सज्झाय
स्वाध्याय के लिए उपयुक्त स्थान की प्राप्ति पर भी स्वाध्याय न करके व्यर्थ वार्तालाप में समय बिताना
उपयुक्त समय पर स्वाध्याय न करना
जहाँ मनुष्य या पशु के कलेवर पड़े हों वहां स्वाध्याय करना।
चित्र संख्या 13