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________________ Ruless lesslesalesale skeslesslesslesslesslesalesalenleske slesslesola saksesslessless lesslesalesalesalese sesslesalesleshesdeskeleseleasinger (3) बल मद-शारीरिक शक्ति का अहंकार। (4) रूप मद-रूप-सौन्दर्य का अहंकार। (5) तप मद-'मैं बड़ा तपस्वी हूं' ऐसा अभिमान करना। (6) श्रुत मद-विद्वत्ता का अहं। _(7) लाभ मद-इच्छित वस्तु का लाभ होने पर अभिमान करना। (8) ऐश्वर्य मद-प्रभुत्व का घमण्ड। ब्रह्मचर्य गुप्ति प्रतिक्रमण : ब्रह्म (आत्मा) में चर्या (रमण)-शील होना ब्रह्मचर्य है। साधु मैथुन का सर्वथा त्यागी होता है। ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए वह नव-विध गुप्तियों का पूरी सावधानी से पालन करता है। गुप्ति का अर्थ है-गोपन/रक्षण करना। गुप्ति को बाड़ भी कहते । हैं। जिस प्रकार किसान फसल वाले खेत की बाड़ से रक्षा करता है, वैसे ही साधक अपने अमूल्य ब्रह्मचर्य व्रत की नौ प्रकार की बाड़ों से रक्षा करता है। ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों/बाड़ों का स्वरूप इस प्रकार है (1) विविक्त-वसति-सेवन-जहां पर स्त्री, पशु एवं नपुंसक का वास हो, वहां नहीं ठहरना। (2) स्त्री-कथा-परिहार-स्त्री-संबंधी कथाओं एवं स्त्रियों से हंसी-मजाक का त्याग करना। (3) निषद्यानुपवेशन-जिस स्थान पर स्त्री बैठी हो, उसके उठ जाने के बाद भी दो घड़ी तक उस स्थान पर न बैठना। (4) स्त्री-अंगोपांग-अदर्शन-स्त्री के अंग-उपांगों को नहीं देखना। (5) कुड्यान्तर-शब्द-श्रवणादि-वर्जन-दीवार या कपाट आदि के पीछे से स्त्रियों के मनोहर शब्द, गीत, हास्य, रोदन आदि को न सुनना। (6) पूर्व-भोग-अस्मरण-दीक्षा से पूर्व सेवित भोगों का स्मरण न करना। (7) प्रणीत-भोजन-त्याग-शरीर में विशिष्ट बल एवं इन्द्रियों में चंचलता उत्पन्न करने वाले गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का त्याग करना। (8) अतिमात्रा-भोजन-त्याग-रूखा-सूखा भोजन भी अधिक मात्रा में न खाना। (9) विभूषा-परिवर्जन-शरीर के शृंगार का त्याग करना। श्रमणधर्म प्रतिक्रमण : आगम में वर्णित जिन धर्मों को आत्मसात् करते हुए साधु आत्मविकास की यात्रा करता है उन्हें श्रमण-धर्म कहा जाता है। श्रमण-धर्म निम्नोक्त दस प्रकार का हैचतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण // 100 // Avashyak Sutra parmanar a ppagappapreparappaparmanapapappyRPARIES Adolescleasle.ple selessle str wasakasakerlastestrokerlesslesslesterlesslesslesalesaleelesesekesrkestasselesslesalesarkestlesslestestsslesalestealsakestatestostestoskelestatest strokerse
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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