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________________ k sesaleraokeskskskskskskskeletale Releaslesleaslesleaslesslestatestresslesalesterdaskestastesteaslesslesterolorkstakestastestsleaslesskeleaslestonstrata ____ गौरव से जीव गुरुता/ भारीपन को प्राप्त होकर अनन्त संसार सागर में डूब जाता है। संसार-सागर को तैरने का इच्छुक साधक प्रतिक्रमण द्वारा गौरव से उत्पन्न दोषों का निराकरण करता है। विराधना प्रतिक्रमण : ज्ञानादि रत्नत्रय की सम्यक् रूप से परिपालना करना आराधना कहलाती है। आराधना का विपरीतार्थक शब्द है- विराधना। विराधना का अर्थ है ज्ञानादि रूप तीन रत्नों का सम्यक् विधि से पालन न करना, उनकी आराधना में दोष लगाना अथवा उनके प्रति उपेक्षा भाव धारण करना। विराधना तीन प्रकार की है-(1) ज्ञान विराधना, (2) दर्शन विराधना, (3) चारित्र विराधना। सावधानी रखते हुए भी रत्नत्रय की आराधना में कभी दोष उत्पन्न हो जाते हैं। उन्हीं की शुद्धि के लिए साधक प्रतिक्रमण द्वारा उक्त दोषों से निवृत्त होता है। ___कषाय प्रतिक्रमण : कष का अर्थ है संसार और आय का अर्थ है लाभ। अर्थात् जन्ममरण रूप संसार की जो वृद्धि करता है उसे कषाय कहते हैं। कषाय चार प्रकार का है-(1) क्रोध, (2) मान, (3) माया, एवं (4) लोभ। ये चारों कषाय आत्मा के शत्रु हैं। ये आत्म-गुणों से का वैसे ही हरण कर लेते हैं जैसे किसी असावधान श्रेष्ठी का धन चोर चुरा लेते हैं। साधक आत्मगुणों की रक्षा में सतत सावधान रहता है। इसीलिए वह चार कषायों से प्रतिदिन प्रतिक्रमण करता है। संज्ञा प्रतिक्रमण : विकार युक्त अभिलाषा/इच्छा को संज्ञा कहते हैं। संज्ञाएं चार हैं, यथा-(1) आहार संज्ञा, (2) भय संज्ञा, (3) मैथुन संज्ञा, एवं (4) परिग्रह संज्ञा। आहार जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है। प्रत्येक जीव में आहार संज्ञा विद्यमान रहती है। आहार के प्रति तीव्र आसक्ति, अमर्यादित और अनार्य भोजन विकृत आहार की श्रेणी में आते हैं जिनका त्याग साधक के लिए अनिवार्य है। भय भी प्राणिमात्र में रहता है। परन्तु साधु अभय की साधना द्वारा भय पर विजय प्राप्त कर लेता है। ब्रह्मचर्य की अखण्ड साधना द्वारा साधु मैथुन से मुक्त रहता है। पंचम महाव्रत के रूप में वह परिग्रह का त्याग करता है। कदाचित् संज्ञा संबंधी दोष की उत्पत्ति हो जाती है तो श्रमण प्रतिक्रमण द्वारा आत्मशुद्धि कर लेता है। विकथा प्रतिक्रमण : विकार उत्पन्न करने वाली कथा-कहानी, चर्चा-वार्ता को विकथा कहा जाता है। विकथा चार प्रकार की है, यथा (1) स्त्रीकथा-स्त्रियों की वेश-भूषा, रहन-सहन, खान-पान, अंगोपांग आदि की चर्चा करना स्त्रीकथा है। आवश्यक सूत्र // 95 // IVth Chp. : Pratikraman apnasapaningpagegamagraneparappanas न s
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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