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________________ kkkkkkk अप्रशस्त लेश्याओं के आचरण एवं प्रशस्त लेश्याओं के अनाचरण से जो अतिचार लगा है, उसका प्रतिक्रमण करता हूं। छह लेश्याएं हैं - (1) कृष्ण लेश्या, (2) नील लेश्या, (3) कापोत लेश्या (ये तीन अप्रशस्त लेश्याएं हैं), (4) तेजोलेश्या, (5) पद्म लेश्या, एवं (6) शुक् लेश्या । (अंतिम तीन प्रशस्त लेश्याएं हैं।) Exposition: I condemn myself for faults in ascetic conduct arising out of violence to six types of living being earth bodied, water bodied, fire bodied, air bodied, vegetable bodied and mobile living beings. I feel sorry for faults arising out of practice of ignomous reflections and non practice of ominous reflections. Six thought reflections are: (1) Black (2) Blue (3) Grey reflection. These three are ignominious reflections (4) Bright ( Tejo) reflection (5) Padma (yellow) reflection and (6) White reflection (the last three are ominous reflections) पडिक्कमामि सत्तहिं भयट्ठाणेहिं, अट्ठहिं मयट्ठाणेहिं, नवहिं बंभचेरगुत्तीहिं, दसविहे समणधम्मे, एक्कारसहिं उवासगपडिमाहिं, बारसहिं भिक्खुपडिमाहिं, तेरसहिं किरियाठाणेहिं, चउद्दसहिं भूयगाामेहिं, पण्णरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमेहिं, अट्ठारसविहे अबंभेहिं, गूणवीसा णायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहि ठाणेहिं, एगवीसाए सबलेहिं, बावीसाए परीसहेहिं, तेवीसाए सूयगडज्झयणेहिं, चउवीसाए देवेहिं, पणबीसाए भावणाहिं, छव्वीसाए दसाकप्पववहाराणं उद्देसण कालेहिं, सत्तावीसाए अणगार गुणेहिं, अट्ठावीसाए आयारप्पकप्पेहिं, एगूणतीसाए पावसुयप्पसंगेहिं तीसाए महामोहणीयट्ठाणेहिं, एगतीसाए सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए जोगसंगहेहिं, तेत्तीसाए आसायणाहिं । भावार्थ : मैं प्रतिक्रमण करता हूं अर्थात् आगे कहे जाने वाले सात से तैंतीस बोल पर्यंत स्थानों में से प्रशस्त के अनाचरण और अप्रशस्त के आचरण से उपन्न दोषों से पीछे हटता हूं सात भय के स्थानों अर्थात् कारणों से, आठ मद के स्थानों से, नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तियों की सम्यक् आराधना न करने से, दस प्रकार के श्रमण धर्म की विराधना से, ग्यारह श्रावक - प्रतिमाओं की विपरीत प्ररूपणा करने से, बारह भिक्षु प्रतिमाओं की सम्यक् आराधना न करने से, तेरह क्रियास्थानों से, चौदह जीव-समूहों की हिंसा से पन्द्रह प्रकार के परमअधार्मिकों-परमाधामी देवों जैसा व्यवहार करने से, सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुत- स्कंध के सोलह अध्ययनों में कथित श्रमणाचार का पालन न करने से, सतरह प्रकार के असंयम से, अठारह चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण Avashyak Sutra // 90 //
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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