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हैं - (1) कायिकी, (2) आधिकरणिकी, (3) प्राद्वेषिकी, (4) पारितापनिकी, एवं (5) प्राणातिपातिकी ।
पांच कामगुणों से उत्पन्न दोषों का प्रतिक्रमण करता हूं। पांच कामगुण हैं - (1) शब्द, (2) रूप, (3) रस, (4) गंध और (5) स्पर्श ।
पांच महाव्रतों में लगे हुए दोषों का प्रतिक्रमण करता हूं। पांच महाव्रत हैं- (1) सर्व प्राणातिपात विरमण (अहिंसा), (2) सर्व मृषावाद विरमण (सत्य), (3) सर्व अदत्तादान विरमण (अस्तेय), (4) सर्व मैथुन विरमण (ब्रह्मचर्य) एवं (5) सर्व परिग्रह विरमण (अपरिग्रह ) ।
पांच समितियों की सम्यक् आराधना न कर पाने से जो दोष लगे हैं उनका प्रतिक्रमण करता हूं। पांच समिति हैं-(1) ईर्या, (2) भाषा, (3) एषणा, (4) आदान भाण्डमात्र निक्षेपणा, एवं (5) उच्चार-प्रस्रवण खेल - जल-मल - सिंघाण परिष्ठापनिका समिति ।
Exposition: I withdraw myself from faults arising out of five types of activities. Five activities are: ( 1 ) Physical activity, (2) activity with some weapon, (3) activity arising out of hatred, (4) to cause trouble (5) to destroy some life-force.
I feel sorry for faults arising out of five types of sensual pleasures (1) pleasant word, (2) pleasant sight (3) pleasant taste (4) pleasant smell and (5) pleasant touch.
I condemn myself for faults in practice of five major vows. Five major vows are: (1) Avoiding violence completely, (2) Avoiding falsehood totally, (3) Avoiding stealing totally, (4) Completely avoiding cohabitation and (5) Completely avoiding attachment to possessions.
I feel sorry for faults arising out of not properly practicing five samitis (1) In movement (2) In talk (3) In seeking alms ( 4 ) In handling and handing over ones cloth, pot etc. and (5) In discarding stool, urine, dirt of nose, body, mouth.
पडिक्कमामि छहिं जीव - निकाएहिं - पुढविकाएणं, आउकाएणं, तेउकाएणं, वाउकाएणं, वणस्सइ - काएणं, तसकाएणं ।
डिक्कमा छहिं साहिं - कण्ह-लेसाए, नील-लेसाए, काउ-लेसाए, तेउ-लेसाए, पम्ह-लेसाए, सुक्क - लेसाए ।
भावार्थ : छह प्रकार के जीव - निकायों (जीवों की राशि या समूह) की हिंसा से उत्पन्न अतिचारों का प्रतिक्रमण करता हूं। छह जीव निकाय हैं - (1) पृथ्वीकाय, (2) अप्काय, (3) तेउकाय, (4) वायुकाय, (5) वनस्पतिकाय, एवं (6) त्रसका ।
आवश्यक सूत्र
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IVth Chp. : Pratikraman