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________________ ggestestrakatkeseksksesale skesakaleshanslasheskeskassleshsakaleshes ke salesalsastessesksksistestlestessetstresslesheera चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण आमुख : आवश्यक का चतुर्थ चरण है-प्रतिक्रमण। आवश्यक के प्रथम तीन चरण-सामायिक, चतुर्विंशति-स्तव एवं वन्दन, प्रतिक्रमण' की भूमिका तैयार करते हैं। समता भाव में स्थित साधक, चौबीस जिनदेवों की स्तुति एवं वन्दनमय भावों के फलस्वरूप अपने भीतर आध्यात्मिक उल्लास को अनुभव करता है। तत्पश्चात् वह आत्म-अवलोकन की यात्रा पर निकलता है। इसी यात्रा का नाम प्रतिक्रमण है। ___'प्रतिक्रमण' शब्द प्रति उपसर्ग और क्रमु धातु के संयोग से बना है। जिसका अर्थ है-बाहर से भीतर लौटना, अथवा परस्थान से स्वस्थान में लौटना। प्रतिक्रमण की आराधना द्वारा साधक मिथ्यात्व, प्रमाद, अज्ञान, असंयम आदि परस्थानों से सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप स्वस्थान में लौट आता है। 'प्रतिक्रमण' आत्मदर्शन एवं आत्मशुद्धि की विशिष्ट साधना है। आत्मदर्शन के बिना आत्मशुद्धि संभव नहीं है और आत्मशुद्धि के अभाव में निर्वाण संभव नहीं है। निर्वाण/मुक्ति आत्मा का अंतिम लक्ष्य है। आत्मदर्शन मुक्ति-महल का प्रथम सोपान है। आत्म-दर्शन द्वारा साधक स्वयं के गुण-दोषों का आकलन करता है। गुणों में उसका अनुराग बढ़ता है और दोषों से विराग भाव पैदा होता है। प्रतिक्रमण की अवस्था में साधक, न केवल अपने दोषों का स्मरण करता है बल्कि उन दोषों से मुक्ति का भी वह संकल्प करता है। साधक का जीवन व्रतों, महाव्रतों एवं मर्यादाओं से पूर्णतः रक्षित होता है। परन्तु जीवनव्यवहार को साधते हुए व्रतों की आराधना में स्खलना हो जाना साधारण बात है। इन्हीं स्खलनाओं की शुद्धि के लिए प्रतिक्रमण किया जाता है। जैसे स्नान करने से शरीर पर जमी धूल-मिट्टी दूर हो जाती है, उसी प्रकार प्रतिक्रमण से आत्मा पर लगी हुई पाप रूपी धूल दूर हो जाती है। स्नान से जैसे शरीर में ताजगी और हल्कापन अनुभव होता है, ऐसे ही प्रतिक्रमण से आत्मा निर्भार और निर्मल होकर आनन्द को अनुभव करती है। चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण // 74 // Avashyak Sutra aaraamaraparipraap PranayamArraraparARANAS
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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