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night Bhikshu Pratima, 9. Second seven days and night Pratima, 10. Third seven night days Pratima, 11. Day and night Bhikshu Pratima, 12. One single night Bhikshu Pratima.
Note : While performing their duties the alm seekers, who haveadopted the above mentioned next to next month's Pratimas have to perform all the duties of the alm seekers who prescribed for the Pratimas of the previous months, too. ७८-दुवालसविहे सम्भोगे पण्णत्ते, तं जहा
उवही सुअ भत्त पाणे अंजली पग्गहे त्ति य। ' दायणे य निकाए अ अब्भुट्टाणे ति आवरे ।।१।। किइ कम्मस्स य करणे वेयावच्चकरणे इ अ।
समोसरणं संनिसिज्जा य कहाए आ पबंधणे ।।२।। सम्भोग की संख्या बारह बतायी गयी है। यथा – १. उपधि-विषयक सम्भोग (साधु द्वारा वस्त्रप्रात्रादि विषयक मर्यादा का पालन), २. श्रुत-विषयक सम्भोग (साधु द्वारा श्रुत-विषयक वाचनादि निर्दोष विधि का पालन), ३. भक्तपान विषयक सम्भोग (साधु द्वारा भक्त-पान विषयक निर्दोष, मर्यादा का पालन, ४. अंजली-प्रग्रह सम्भोग (साधुओं की पारस्परिक वंदना और हाथों की अंजलि जोड़कर नमस्कारादि का पालन), ५. दान विषयक सम्भोग (साधु द्वारा अपने वस्त्र-पात्रादि को अन्य साम्भोगिक साधु को देना), ६. निकाचन-विषयक सम्भोग (साधु द्वारा यथाविधि अन्य साम्भोगिक साधु को शुद्ध वस्त्र, पात्र या भक्तपानादि देने का निमन्त्रण देना), ७. अभ्युत्थान विषयक सम्भोग (अधिक दीक्षा पर्याय वाले साधु का यथोचित अभिवादन-सत्कार करना), ८. कृतिकर्मकरण सम्भोग (साधु द्वारा कृतिकर्म वन्दनादि यथाविधि करना), ९. वैयावृत्य-करण सम्भोग (साधु द्वारा वृद्ध, बाल, रोगी प्रभृति साधुओं की यथाविधि वैयावृत्य करना), १०. समवसरण-सम्भोग (प्रवचन-भवन आदि स्थानों पर साधुओं का मर्यादा पूर्वक पारस्परिक मिलना, उठना-बैठना), ११. संनिषद्या सम्भोग (साधु द्वारा अपने आसन से उठकर गुरुजन से प्रश्न पूछना या उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर (देना), १२. कथा प्रबन्धन सम्भोग (साधु द्वारा गुरु के साथ तत्त्व चर्चा या धर्मकथा के दौरान वाद-कथा सम्बन्धी नियमों अर्थात् मर्यादाओं का पालन करना)।
संकेत:-साधु द्वारा अपने संघ के नियमों का मर्यादापूर्वक पालन करना सम्भोग है और उल्लंघन करना विसम्भोग कहलाता है।
The number of mutual enjoyment (Sambhog) has been told twelve as :- 1. Mutual enjoyment related to articles (to abide by the rule of the limit of clothes and utencils of the Monk), 2. Mutual enjoyment of scriptures (to abide by the rules related to discourse about of scriptures) 3. Mutual enjoyment related to
बारहवां समवाय
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Samvayang Sutra