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सुग्गीवे दढरहे विण्हू वसुपुजे य खत्तिए। कयवम्मा सीहसेणे भाणू विस्ससेणे इय।।६।। सूरे सुदंसणे कुंभे सुमित्तविजए समुद्दविजये य। राया य आससेणे य सिद्धत्थे च्चिय खत्तिए।।७।। उदितोदिय कुलवंसा विसुद्धवंसा गुणेहिं उववेया।
तित्थप्पवत्तयाणं एए पियरो जिणवराणं]।।८।। इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस पिता हुए। यथा-1. नाभिराय, 2. जितशत्रु, 3. जितारि, 4. संवर, 5. मेघ, 6. धर, 7. प्रतिष्ठ, 8. महासेन, 9. सुग्रीव, 10. दृढ़रथ, 11. विष्णु, 12. वसुपूज्य, 13. कृतवर्मा, 14. सिंहसेन, 15. भानु, 16. विश्वसेन, 17. सूरसेन, 18. सुदर्शन, 19. कुम्भराज, 20. सुमित्र, 21. विजय, 22. समुद्रविजय, 23. अश्वसेन, 24. सिद्धार्थ क्षत्रिय ।।5-8।।
तीर्थ प्रवर्तक तीर्थंकरों के पिताओं का वंश और कुल उच्च व विशुद्ध था। वे सभी उत्तम गुणों से संयुक्त थे।।8।।
Twenty four fathers had been of twenty four fordmakers in Bharatvarsh of Jambu Continent in this degrading time (Avasarpini Kaal) they were as : 1Nabhiraya, 2. Jitshatru, 3. Jitari, 4. Samvar, 5. Megh, 6. Dhar, 7. Pratishth, 8. Mahasen, 9. Sugriv, 10. Dridharatha, 11. Vishnu, 12. Vashupujya, 13. Kritvarma, 14. Singhsen, 15. Bhanu, 16. Vishava Sen, 17. Sur Sen, 18. Sudrshan, 19, Kumbharaj, 20. Sumitra, 21. Vijay, 22. Samudra Vijay, 23. Ashava Sen, and 24. Shidharth (the warriors).
The clans of the fathers of these Ford Makers were noble and pure. They all were endowed with supreme attributes.
६३४-जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं मायरो होत्था। तं जहा
मरु देवी विजया सेणा [ सिद्धत्था मंगला सुसीमा य। पुहवी लक्खणा रामा नंदा विण्हू जया सामा]। सुजसा सुव्वया अइरा सिरिया देवी पभावई पउमा।।९।।
वप्पा सिवा य वामा य तिसलादेवी य जिणमाया।।१०।। इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस माताएँ हुई | हैं, जिनका उल्लेख इस प्रकार है-1. मरुदेवी, 2. विजया, 3. सेना, 4. सिद्धार्था, 5. मंगला, 6. सुसीमा, -
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महापुरुष %%%%% %%
330 % %%%%%
Samvayang Sutra
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