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यावत् ये नरक अशुभ हैं और इन नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं।
How much area of the Pitch Dark Hell the seventh hell and how many hellish residencies are stated there? such a question was aksed to Mahavira. Bhagwan replied:-Gautam ! The seventh hell is called Pitch Dark hell which is one lac eight thousand yojanas thick. In this hell going deep from its upper part equal to fifty two thousand and half yojans and leaving fifty two thousand and a half yojans from its bottom, too, in the middle part of this seventh hell five Anuttar, very huge Mahanarak have been said they are as : 1. Kaal, 2. Mahakall, 3. Roruk, 4. Maha roruk, and 5. Apratishthan hell:
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All these five giant hells are round and triangular, i.e., the Apratishtan Narak situated in the middle is of round shape and remaining other, four hells situated in all the four directions are of triangular shape. At the bottom all these hells have the shape of short handle shape (Khurpa). Thus, all these hells are inauspicious and pains are inauspicious in these hells.
५८६ - केवइया णं भंते! असुरकुमारावासा पण्णत्ता ? गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तर जोयणसयसहस्स - बाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयण-सहस्सं वज्जित्ता मज्झे अट्ठहत्तर जोयणसयसहस्से एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसट्ठि असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं भवणा बाहिं वट्टा, अंतो चउरंसा, अहे पोक्खरकण्णिआ-संठाणसंठिया उक्किण्णंतर विउल - गंभीर-खाय-फलिहा अट्टालय - चरिय-दारगोउर-कवाड - तोरण- पडिदुवार - देसभागा जंत- मुसल - भुसंढ सयग्घि- परिवारिया अउझा अडयालकोट्ठरइया अडयालकयवणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस - सरस-रत्तचंदण - दद्दरदिण्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्कडज्यंत धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामा सुगंधिया गंध या अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सप्पभा समरीया सउज्जया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पड़िरूवा । एवं जं जस्स कमइ तं तस्स, जं जं * गाहाहिं भणियं तह चेव वण्णओ ।
भगवन्! असुर कुमार के आवासों की संख्या कितनी कही गई है ?
गौतम! पहली पृथ्वी रत्नप्रभा पृथ्वी है जो एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्य वाली कही गई है। इस पृथ्वी में ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन कर और नीचे एक हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख अठहत्तर हजार योजन में इस पृथ्वी के भीतर असुरकुमारों के चौसठ लाख भवनावास कहे गए हैं। वे भवन बाहर से गोल हैं, भीतर से चौकोण हैं और नीचे से कमल की कर्णिका के
आकार से स्थित हैं। उनके चारों ओर खाई व परिखा खुदी हुई हैं, जो बहुत गहरी हैं। खाई व परिखा मध्य में पाल बंधी हुई है। वे भवन अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर, कपाट, तोरण, प्रतिद्वार, देश
विविध विषय
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Samvayang Sutra
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