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________________ 5555555555555555555555555555555555555 प्रश्नव्याकरण अंग में एक सौ आठ प्रश्रों, एक सौ आठ अप्रश्नों और एक सौ आठ प्रश्नाप्रश्रों का, # विद्याओं के अतिशयों का तथा नागों-सुपर्णों के साथ दिव्य संवादों का निरूपण किया गया है। What is the tenth canon of twelve canons the “Prashan Vyakaran" canon is? What has been narrated in this canon? In this canon "the Prashan Vyakaran" one hundred eight questions, one hundred eight non-questions, one hundred eight questions-non questions, the Atishayas of learning and the divine dialogues with serpents have been expounded. ५४७-पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय पण्णवय-पत्तेअबुद्ध-विविहत्थभासाभासियाणं अइसयगुण-उवसम-णाणप्पगार-आयरियभासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहिं | विविहवित्थरभासियाणं च जगहियाणं अदागंगुटु-बाहु-असि-मणि-खोम-अइच्च भासियाणं | विविहमहापसिणविज्जा-मणपसिण-विजा-देवयपयोग-पहाण-गुणप्पगासियाणं * सब्भूयदुगुणप्पभाव-नरगणमइविम्हयकराणं अइसयमईयकाल-समय-दम-सम-तित्थकरुत्तमस्म ठिइकरणकारणाणं दुरहिगम-दुरवगाहस्स सव्वसव्वन्नुसम्मअस्स अबुहजण-विबोहणकरस्स | पच्चक्खयपच्चयकराणं पण्हाणं विविहगुणमहत्था जिणवरप्पणीया आघविजंति। प्रश्नव्याकरण दशा में स्वसमय-परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येक बुद्धों के विविध अर्थों वाली भाषाओं द्वारा कथित वचनों का, आमाँषधि आदि अतिशयों, ज्ञानादि गुणों और उपशम भाव के प्रतिपादक नाना प्रकार के आचार्य-भाषितों का. विस्तार पर्वक कहे गए वीर महर्षियों के जगत हितकारी अनेक प्रकार के विस्तृत सुभाषितों का, आदर्श (दर्पण) अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, क्षौम (वस्त्र) और सूर्य | | आदि के आश्रय से दिए गए विद्या-देवताओं के उत्तरों का इस अंग में वर्णन किया गया है। अनेक महाप्रश्न विद्याएँ वचन से ही प्रश्न करने पर उत्तर देती हैं, अनेक विद्याएँ मन से चिन्तित प्रश्नों का उत्तर देती हैं अनेक विद्याएँ अनेक अधिष्ठाता देवताओं के प्रयोग-विशेष की प्रधानता से अनेक अर्थों के 5 संवादक गुणों को प्रकाशित करती हैं और अपने सद्भूत द्विगुण प्रभावक उत्तरों के द्वारा जन समुदाय | को विस्मित करती हैं। उन विद्याओं के चमत्कारों और सत्य वचनों से लोगों में यह दृढ़ विश्वास उत्पन्न होता है कि अतीत काल के समय में दम और शम के धारक अन्य मतों के शास्ताओं से विशिष्ट जिन तीर्थंकर हुए हैं और वे यथार्थवादी थे, अन्यथा इस प्रकार से सत्य विद्या-मन्त्र संभव नहीं थे, इस प्रकार संशयशील मनुष्यों के स्थिरीकरण के कारणभूत दुरभिगम और दुरवगाह, सभी सर्वज्ञों के द्वारा | || सम्मत, अज्ञ (अबुध) जनों को प्रबोध करने वाले, प्रत्यक्ष प्रतीति-कारक प्रश्नों के विविध गुण और महान अर्थ वाले जिनवर-प्रणीत उत्तर इस अंग में कथित हैं, प्रज्ञापित हैं, प्ररूपित हैं, निदर्शित और उपदर्शित हैं। समवायांग सूत्र Ganipistak 当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当当 277
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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