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________________ Anuttar celestial vehicles after their births in a noble family, Again gaining of cognition and last activities have been described and propounded. Their perception, illustration and explanation have been narrated in it. __ ५४३-अणुत्तरोववाइ यदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल-जगहियाणि || जिणातिसेसा य बहुविसेसा जिणसीसाणं चेव समणगण-पवर-गंधहत्थीणं थिरजसाणं | परीसहसेण्ण-रिउबल-पमद्दणाणं तव दित्त-चरित्त-णाण-सम्मत्त सार-विविहप्पगार-वित्थरपसत्थगुणसंजुयाणं अणगारमहरिसीणं अणगारगुणाण वण्णओ, उत्तमवरतव-विसिट्ठणाणजोगजुत्ताणं, जह य जगहियं भगवओ जारिसा इड्डिविसेसा देवासुर-माणुसाणं परिसाणं पाउब्भावा य जिणसमीवं, जह य उवासंति, जिणवरं जह य परिकहति धम्मं लोगगुरु अमर- ॐ नर-सुर-गणाणं सोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्मविसयविरत्ता नरा जहा अब्भुवैति धम्ममुरालं संजमं तवं चावि बहुविहप्पगारं जह बहूणि वासाणि अणुचरित्ता आराहियनाण दंसण-चरित्त| जोगा जिणवयणमणुगयमहियं भासिया जिणवराण हिययेणमणुण्णेत्ता जे य जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेअइत्ता लभ्रूण य समाहिमुत्तमज्ज्झाण-जोगजुत्ता उववन्ना मुणिवरोत्तमा जह अणुत्तरेसु पावंति जह अणुत्तरं तत्थं विसयसोक्खं। तओ य चुआ कमेण काहिंति संजया जहा य अंतकिरियं एए अन्ने य एवमाइअत्था वित्थरेण। अनुत्तरोपपातिकदशा में परम मंगलकारी, जगत-हितकारी तीर्थंकरों के समवसरण तथा बहुत प्रकार के के जिन-अतिशय वर्णित हैं। तथा जो श्रमण जनों में वरगन्धहस्ती सदृश श्रेष्ठ हैं, स्थिर यश वाले हैं, ॐ परीषह-सेनारूपी शत्रु-बल के मर्दन करने वाले हैं, तप से दीप्त हैं, जो चारित्र, ज्ञान, सम्यक्त्व रूप सार वाले अनेक प्रकार के विशाल प्रशस्त गुणों से संयुक्त हैं, ऐसे अनगार महर्षियों के अनगार-गुणों का अनुत्तरोपपातिक दशा में वर्णन है। अतीव श्रेष्ठ तपो विशेष से और विशिष्ट ज्ञान-योग से युक्त हैं, जिन्होंने जगत् हितकारी भगवान् तीर्थंकरों की जैसी परम आश्चर्यकारिणी ऋद्धियों की विशेषताओं को और देव, असुर, मनुष्यों की सभाओं के प्रादुर्भाव को देखा है, वे महापुरुष जिस प्रकार जिनवर के समीप जाकर उनकी जिस प्रकार से उपासना करते हैं तथा असुर, नर, सुरगणों के लोकगुरु वे जिनवर जिस प्रकार से उनको धर्म का उपदेश देते हैं वे क्षीण-कर्मा महापुरुष उनके द्वारा उपदिष्ट धर्म को सुनकर के अपने समस्त काम-भोगों से और इन्द्रियों के विषयों से विरक्त होकर जिस प्रकार से उदार धर्म को और | विविध प्रकार से संयम-तप को स्वीकार करते हैं तथा जिस प्रकार से बहुत वर्षों तक उनका आचरण करके ज्ञान, दर्शन, चारित्र योग की आराधना कर जिन-वचन के अनुगत यानि अनुकूल पूजित धर्म का दूसरे भव्य जीवों को उपदेश देकर और अपने शिष्यों को अध्ययन कराकर तथा जिनवरों की अन्तरंग से आराधना कर वे उत्तम मुनि जहाँ पर जितने भक्तों का अनशन के द्वारा छेदन कर, समाधि को प्राप्त कर और उत्तम ध्यान योग से युक्त होते हुए जिस प्रकार से अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं और वहाँ गणि-पिटक 274 Samvayang Sutra 步步当当当当当当当当当当当当当当%%%%%%%%%%%%%%%%
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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