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15. Afflictions of laity, 16. Samlekhana of householders, 17. Restraint of food of householders, 18. Padopagaman of householders, 19. Going to Devlokas, 20. Rebirth into the noble families, 21. Again enlightened, 22. The final activities of the householders (Antkrit). __ ५३६-उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेमा परिसा वित्थरधम्मसवणाणि बोहिलाभअभिगम-सम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं मूलगुण-उत्तरगुणाइयारा ठिई विसेसा पडिमाभिग्ग हग्गहणपालणा उवसग्गाहियासणा णिरुवसग्गा य तवा य विचित्ता सीलव्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासा अपच्छिममारणंतिया य संलेहणा-झोसणाहिं अप्पाणं जह य भावइत्ता बहूणि भत्ताणि अणसणाए य छेअइत्ता उववण्णा कप्पवरविमाणुत्तमेसु जह अणुभवंति सुरवरविमाणवर-पोंडरीएसु सोक्खाइं अणोवमाइं कमेण भुत्तूण उत्तमाइं तओ आउक्खएणं चुया समाणा जहा जिणमयम्मि बोहिं लधुण य संजमुत्तमं तमरयोघविप्पमुक्का उवैति जह अक्खयं सव्वदुक्खमोक्खं। एते अन्ने य एवमाइअत्था वित्थरेण य। . उपासकदशांग में उपासकों यानि श्रावकों की ऋद्धि-विशेष, परिषद् यानि परिवार, विस्तृत धर्मश्रवण, बोधि लाभ, धर्माचार्य के समीप अभिगमन, सम्यक्त्व की विशुद्धता, व्रत की स्थिरता, मूलगुण व उत्तरगुणों का धारण, उनके अतिचार, स्थिति-विशेष, प्रतिमाओं का ग्रहण, उनका पालन, उपसर्गों का सहन या निरुपसर्ग-परिपालन, अनेक प्रकार के तप, शील, व्रत, गुण, वेरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, और अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना जोषमणा यानि सेवना से आत्मा को यथाविधि भावित कर बहुतसे भक्तों को अनशन तप से छेदन कर, उत्तम श्रेष्ठ देव-विमानों में उत्पन्न होकर, जिस प्रकार वे उन उत्तम विमानों में अनुपम उत्तम सुखों का अनुभव करते हैं, उन्हें भोगकर फिर आयु का क्षय होने पर च्युत होकर यानि मनुष्य योनि में उत्पन्न होकर और जिनमत में बोधि को प्राप्त कर तथा उत्तम संयम धारण कर तमोरज के समूह से विप्रमुक्त होकर जिस प्रकार अक्षय शिव-सुख को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित होते हैं, ये समस्त और इसी प्रकार के अन्य भी अर्थ, इस उपासक-दशांग में सविस्तार वर्णित
In Upasak Dashang householder's extraordinary wealth and powers, family, achievement of cognition through listening, going nearer to perceptors, the purity of righteousness, steadfastness in vows, acceptance of fundamental virtues and post virtues, exclusive status, observation of special vows (Pratima), tolerance of afflictions, many type of penances, celibacy, virtues, renunciation, restraint, Paushdhopvas and making ones soul capable of salvation as mentioned above and in the end through observing Samlekhna unto death, abandoning various kinds of foods through fastings, reincarnating into the supreme and excellent celestial vehicles enjoying extraordinary great happiness in these
समवायांग सूत्र
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