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यह ज्ञाताधर्मकथा अङ्गरूप छठा अंग है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, उनमें से प्रथम श्रुत-स्कन्ध के उन्नीस अध्ययन हैं। वे संक्षेप में दो प्रकार से कहे गए हैं, यथा - १ - चरित, २- कल्पित । इसके प्रारम्भिक दस अध्ययनों में आख्यायिका आदि रूप अवान्तर भेद नहीं हैं। शेष नौ अध्ययनों में से प्रत्येक में पाँच सौ चालीस आख्यायिकाएँ कही गई हैं। प्रत्येक आख्यायिका में पाँच सौ उपाख्यायिकाएँ और प्रत्येक उपाख्यायिका में पाँच सौ आख्यायिका - उपाख्यायिकाएँ हैं।
धर्म कथाओं के दश वर्ग हैं। उनमें से एक-एक धर्म कथा में पाँच-पाँच सौ आख्यायिकाएँ हैं, एक-एक आख्यायिका में पाँच-पाँच सौ उपाख्यायिकाएँ हैं, एक-एक उपाख्यायिका में पाँच-पाँच सौ आख्यायिका-उपाख्यायिकाएँ हैं । इस प्रकार ये समस्त पूर्वापर से गुणित होकर बारह करोड़ पचास लाख होती हैं।
In the form of canons, Gyata Dharam Kathanga is sixth one. There are two sections in it in which the first section has nineteen chapters, these have been said of two types as follows :- 1. Charit, 2. Kalpit. In the first ten chapters there is no further division of Akhyayikai etc. and in the remaining nine chapters five hundred forty Akhyayikais and Uppakhyayikais are in it.
There are ten classes of Dharam Kathas each. Out of which in every Dharam Katha there are five hundred Akhyayikais. In every Akhyayikai there are five hundred Uppakhyayikai, and in each Uppakhyayikai there are five hundred Akhyayikai and Uppakhyayikais. Thus, all these become twelve crore fifty lacs multiplicating each other from its beginning.
५३४ - एगूणतीसं उद्देसणकाला, एगूणतीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता । संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासया कडा निबद्धा निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति । से एवं आया, से एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जति । से तं णायाधम्मकहाओ ६ ।
ज्ञाताधर्मकथा में उनतीस उद्देशन काल हैं, उनतीस समुद्देशन - काल हैं, पद - गणना की अपेक्षा से संख्यात हजार पद हैं, संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम हैं, परीत त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं। ये समस्त शाश्वत, कृत, निबद्ध निकाचित, जिन- प्रज्ञप्त भाव इस ज्ञाताधर्मकथा में कथित हैं प्रज्ञपित हैं निदर्शितउपदर्शित हैं। इस अंग का अध्येता आत्मा ज्ञाता - विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरण-करण की प्ररूपणा
द्वारा वस्तु के स्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, निदर्शन- उपदर्शन किया गया है। यह छठे अंग ज्ञाता धर्मकथा का परिचय है।
Udeshan Kaals are twenty nine in Gyata Dharam Katha, twenty nine are
समवायांग सूत्र
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Ganipittak
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