SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 555%%%%% %% %%% %% %%% %%% %%% %% %% %%% % | अजीव सूचित किए जाते हैं, लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है, लोक और अलोक सूचित किया जाता है। What the second canon of twelve canons "the Sutrakrit is?" What is narrated in it? Swasamaya is pointed out, Prasamaya is pointed out, Swasamaya and Prasamaya are communicated through Sutrakrit, the living beings are indicated, * the non-living beings are indicated, living beings are non-living beings are | pointed out. Cosmos is indicated, trans-cosmos is indicated, cosmos and trans cosmos are pointed out. ५१६-सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निजरण-बंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइजति। समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमयमोह-मोहमइ-मोहियाणं संदेहजायसहजबुद्धि * परिणामसंसइयाणं पावकर-मलिनमइ-गुण-विसोहणत्थं असीअस्स किरियावाइयसयस्स, | चउरासीए अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं तिण्हं तेवट्ठीणं | अण्णदिट्ठिइयसयाणं बूहं किच्चा ससमए ठाविजति। णाणादिटुंत-वयण-णिस्सारं सुटु दरिसयंता । विविहवित्थाराणुगम-परमसब्भावगुणिविसिट्ठा मोहपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूआ सोवाणा चेव सिद्धिसुगइगिहुत्तमस्स णिक्खोभ-निप्पकंपा सुत्तत्था। सूत्रकृत के द्वारा समस्त नौ पदार्थ सूचित किए जाते हैं। यथा – १. जीव, २. अजीव, ३. पुण्य, ४. पाप, ५. आस्रव, ६. संवर, ७. निर्जरा, ८. बन्ध, ९. मोक्ष। जो श्रमण अल्पकाल से ही प्रवजित हैं, जिनकी बुद्धि कुसमयों या सिद्धान्तों (खोटे समयों-सिद्धान्तों) के सुनने से मोहित है, जिनके अन्तरंग (हृदय) तत्त्व के विषय में सन्देह के उत्पन्न होने से आन्दोलित हो रहे हैं और सहज बुद्धि का परिणमन संशय को प्राप्त हो रहा है, उनकी पाप उपार्जन करने वाली मलिन मति के दुर्गुणों के शोधन करने के लिए क्रियावादियों के एक सौ अस्सी, अक्रियावादियों के चौरासी, अज्ञानवादियों के सड़सठ और विनयवादियों के बत्तीस, इन सब तीन सौ तिरेसठ अन्य वादियों का व्यूह अर्थात् निराकरण करके स्वसमय यानि जैन सिद्धान्त स्थापित किया जाता है। नाना प्रकार के दृष्टान्त पूर्ण युक्तियुक्त वचनों के द्वारा परमत के वचनों की भली-भाँति नि:सारता दिखलाते हुए तथा सत्पद-प्ररूपणा आदि अनेक अनुयोग द्वारों के द्वारा जीवादि तत्त्वों को विविध प्रकार से विस्तारानगम कर परम सद्भाव गण-विशिष्ट मोक्ष मार्ग के अवतारक, सम्यग्दर्शनादि में प्राणियों के प्रवर्तक, सकल सूत्र-अर्थ सम्बन्धी दोषों से रहित, समस्त सद्गुणों से सहित, उदार, प्रगाढ़, अन्धकारमयी दुर्गों में दीपक स्वरूप, सिद्धि और सुगति रूपी उत्तम गृह के लिए सोपान के समान, प्रवादियों के विक्षोभ से रहित निष्प्रकम्प सूत्र और अर्थ सूचित । किए जाते हैं। All the nine substances are indicated through Sutrakrit canon as:- 1. Living being, 2. Non-living being, 3. Merit, 4. Demerit, 5. Influx of Karmas, 6. Stoppage गणि-पिटक 254 Samvalyang Sutra
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy