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ज्ञानावरणीय, नाम और अन्तराय इन तीनों कर्म प्रकृतियों की उत्तर प्रकृतियाँ बावन कही गई हैं । जिसमें ज्ञानावरणीय कर्म की पाँच उत्तर प्रकृतियाँ, नामकर्म की बयालीस उत्तर प्रकृतियाँ तथा अन्तराय || कर्म की पाँच उत्तर प्रकृतियाँ हैं।
The Uttar tendencies of the karma tendencies of three karmas named as knowledge obscuring karma physique making karmas and obstruction causing karmas have been said has fifty two in which five are of knowledge obscuring karmas forty two Uttar tendencies of body making karmas and five Uttar tendencies of obstruction causing karmas.
२८७-सोहम्म-सणंकुमार-माहिदेसु तिसु कप्पेसु वावन्नं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता।
सौधर्म कल्प, सनत्कुमार कल्प और माहेन्द्र कल्प इन तीन कल्पों में बावन लाख विमानावास कहे गए हैं जिनमें सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमानावास, सनत्कुमार कल्प में बारह लाख विमानावास तथा माहेन्द्र कल्प में आठ लाख विमानावास हैं।
The total strength of the residences of celestial vehicles of three kalpas named Sodharma Kalpa-Sanat Kumar Kalpa-Mahendra Kalpa have been stated as fifty two lacs which comprises of thirty two lacs of Sodharma Kalp, twelve lacs of Sanat Kumar Kalpa and eight lacs of Mahendra Kalpaare said.
॥ बावनवां समवाय समाप्त । (The End of Fifty Second Samvaya)
तिरेपनवां समवाय
The Fifty Third Samvaya २८८-देवकुरु-उत्तरकुरुयाओ णं जीवाओ तेवनं तेवन्नं जोयणसहस्साई साइरेगाई F आयामेणं पण्णत्ताओ। महाहिमवंत-रुप्पीणं वासहरपव्वयाणं जीवाओ तेवन्नं तेवन्नं || जोयणसहस्साइं नव य एगत्तीसे जोयणसए छच्च एगूणवीसई भागे जोयणस्स आयामेणं | पण्णत्ताओ।
देवकुरु और उत्तरकुरु की जीवाओं के विषय में कहा गया है कि ये जीवाएँ तिरेपन-तिरेपन हजार योजन से कुछ अधिक लम्बी हैं। महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वतों की जीवाओं की लम्बाई के विषय में कहा गया है कि ये तिरेपन-तिरेपन हजार नौ सौ इकतीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग प्रमाण लम्बी हैं।
तिरेपनवां समवाय
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Samvayang Sutra