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________________ 编卐卐卐卐卐卐卐 事 卐 हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापन श्रमण भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित द्वादश अंगों में "समवायांग सूत्र" का चतुर्थ स्थान है। इस सूत्र में जीव- अजीव आदि समस्त पदार्थों का संख्याक्रम एक से शुरू करके कोटानुकोटि संख्या पर्यंत वर्णन हुआ है। इसमें द्रव्य दृष्टि से जीव, अजीव, धर्म, अधर्म आदि द्रव्यों, क्षेत्र दृष्टि से लोक, अलोक, सिद्धालय आदि क्षेत्रों, काल की दृष्टि से समय, आवलिका, मुहूर्त, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी एवं पुद्गल परावर्तन तक काल के विविध परिमाणों और भाव की दृष्टि से ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि जीव के भावों तथा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि अजीव के भावों का कोष शैली में निरूपण हुआ है। कलेवर की दृष्टि से यह आगम भले ही छोटा है, परन्तु विषय बहुलता की दृष्टि से यह एक बृहद् आगम है। शेष इकतीस आगमों में जिन-जिन तत्वों और भावों का संक्षिप्त और विस्तृत वर्णन हुआ है उन समस्त * तत्वों और भावों को संख्याक्रम से इस आगम में सूत्रबद्ध किया गया है। इस दृष्टि से इस आगम को शेष समस्त आगमों की आधारभूमि अथवा आधारशिला कहा जा सकता है। 卐 編編卐 - समवायांग सूत्र एक महत्वपूर्ण आगम है। इसके विषय को हृदयंगम करना सामान्य पाठकों के लिए सरल नहीं है। विशिष्ट मेधावी साधक ही इस आगम की विषयवस्तु को सम्यक् रूप से हृदयंगम कर सकता है। देवलोकों में विराजित आराध्य गुरुदेव उत्तरभारतीय प्रवर्तक श्रुताचार्य पूज्य श्री अमर मुनि जी महाराज ने प्रस्तुत सूत्र का बारीकी से श्रवण-मनन- अध्ययन-अध्यापन कर इसका अनुवादन प्रस्तुत किया है। हमारे लिए यह अत्यंत कष्टप्रद और निराशाजनक है कि गुरुदेव के सशरीर मौजूदगी में हम इस ग्रंथ को पुस्तक रूप में प्रस्तुत नहीं कर पाये। दिनांक १३.२.२०१३ को आराध्य गुरुदेव अपनी लोक यात्रा संपन्न कर परलोक सिधार गए । परंतु यह किंचित् संतोषप्रद है कि गुरुदेव द्वारा रचित विशाल श्रुतराशि हमारे पास है । गुरुदेव का यह महान अवदान शताब्दियों तक हिन्दी और अंग्रेजी के पाठकों का पथ पाथेय क बना रहेगा। गुरुदेव की इस आगम-संपादन यात्रा का मैं भी एक छोटा-सा सहयात्री हूं । इस यात्रा - पथ पर // xii // 筆 编编写写写写写写写写写写与编写写与编写写与编写纸
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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