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________________ 1岁 事 事 % % % % % % % % % % % % % % % बत्तीसवां समवाय The Thirty Second Samvaya २०९- बत्तीसं जोगसंगहा पण्णत्ता। तं जहा आलो यण १, निरवलावे २, आवई सु दढ धम्मया ३। अणिस्सिओवहाणे ४-य, सिक्खा ५, निप्पडिकम्मया ६॥१॥ अण्णायया ७, अलोभे ८, य, तितिक्खा ९, अज्जवे १०, सुई ११ । सम्मदिट्ठी १२, समाही १३,य, आयारे १४, विणओवए १५ ।।२।। धिइमई १६, य, संवेगे १७, पणिही १८, सुविहि १९, संवरे २०। अत्तदोसो वसंहारे २१, सव्वकामविरत्तया २२।।३।। पच्चक्खाणे २३-२४, विउस्सग्गे २५, अप्पमादे २६ लवालवे २७। झाणसंवर जोगे २८, य, उदए मारणंतिए २९ ।।४।। संगाणं च परिण्णाया ३०, पायच्छित्तकरणे वि य ३१ । आराहणा य मरणंते ३२, बत्तीसं जोगसंगहा।।५।। - बत्तीस योग संग्रह कहे गए हैं। मोक्ष-साधक के लिए मन, वचन, काय के प्रशस्त व्यापार योग । संग्रह हैं। योग संग्रहों के माध्यम से मोक्ष की साधना सम्पन्न होती है। बत्तीस योग संग्रह की नामावली इस प्रकार है, यथा - (1) आलोचना-गुरुजनों के समक्ष अपने दोषों की आलोचना करना। (2) निरपलाप-किसी की आलोचना सुनकर दूसरों के समक्ष प्रकट नहीं करना। (3) दृढ़धर्मिता-उपसर्गों में भी दृढ़ता पूर्वक धर्मपथ पर डटे रहना। (4) अनिश्रितोपधान-दूसरों की सहायता की अपेक्षा नहीं रखते हुए तप करना। (5) शिक्षा अध्ययन-अध्यापन की कलाओं और शिक्षाओं का अभ्यास करना। (6) निष्प्रतिकर्मता-शारीरिक श्रृंगार नहीं करना। (7) अज्ञाता-पूजा-प्रतिष्ठा की भावना से ऊपर उठकर गुप्त तप करना। (8) अलोभता-लोभ का परिहार करना। (9) तितिक्षा-समभाव से कष्टों को सहना। (10) आर्जव-सरलभाव धारण करना। (11) शुचि-सत्य एवं संयम की पवित्रता रखना। % % % % % % % % % % % % % % % % % % % % % समवायांग सूत्र % % % ) %% 141 % %% 32th Samvaya % %% % % %% %% % % %% % % %% % % %% % %
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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