SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ % %% % % % %% % % % % % % % % %% % %% %% % %% %% श्रमण भगवान महावीर भी तीस वर्ष अगार अवस्था अर्थात् गृह-वास में रहे। इसके उपरान्त वे अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। The Ford maker (Tirathankara) Lord Parshvanath remained as house holder for a period of thirty years. After that he renouncing the household got consecrated. Shraman Bhagwan Mahavir too, remained as householder for thirty years and after that got consecrated. २०२-रयणप्पभाए णं पुढवीए तीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। ____ रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में कहा गया है कि वहाँ तीस लाख नारकावास हैं। इस रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस पल्योपम स्थिति के अनेकों नारक कहे गए हैं। अधस्तन सातवीं पृथ्वी | तीस सागरोपम स्थिति के नारकों का वर्णन है। कितने ही असुरकुमार देवों की स्थिति तीस पल्योपम कही गई है। In respect of Ratanprabha hell it has been said that the number of hells is thirty lacs. The life span of these infernal beings of Ratanprabha hasbeen said of thirty Palyopama duration. Far below there is a seventh hell in which the life span of the hellish beings of this land has been described of thirty Sagropama duration. The life span of many malevolant demons has been said of thirty * Palyopama. २०३-उवरिमउवरिमगेवेजयाणं देवाणं जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे क देवा उवरिममज्झिमगेवेज्जएसु विमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तीसं | सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा तीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा, पाणमंति वा, उस्ससंति वा, नीससंति वा। तेसि णं देवाणं तीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ। उपरिम-उपरिम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति तीस सागरोपम बतायी गई है। जो देव उपरिम-मध्यम || ग्रैवेयक विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति के बारे में कहा गया है कि वे - तीस सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति वाले देव हैं। वे देव तीस अर्धमासों यानि पन्द्रह मासों के उपरान्त उच्छ्वास निःश्वास और आन-प्राण की क्रिया सम्पन्न करते हैं। वे देव तीस हजार वर्ष के पश्चात् आहार की इच्छा || रखते हैं यानि उनमें तीस हजार वर्ष के अन्तराल से आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। तीसवां समवाय . 136 Samvayang Sutra %%%%%%%%%为当斯与当当当当当当当当当当当当当当当当当]
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy