SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 編編 स्वाति, देवों की स्थिति के वर्णन के साथ, आहार - श्वासोच्छ्वास, सिद्धि आदि का वर्णन भी एक-एक संख्या रूप में किया गया है। इसी प्रकार द्वितीय, तृतीय से लेकर शत पर्यन्त स्थानक - समवायों में जो 4 विषय व्यवहृत हैं उनका संक्षित प्रमाण व परिणाम दोनों रूपों में परिलक्षित है। इससे अध्ययन करने वाले को पदार्थों के स्वरूपादि को क्रमरूप व वैज्ञानिक ढंग से समझने में जहाँ सुगमता रहती है वहाँ दु * विषयों का भी उसे बोध होने लगता है। इस दृष्टि से समवायांग सूत्र का अध्ययन - अनुशीलन उपयोगी एवं उपादेयी है। 事 ४५० सूत्रों में निबद्ध शत स्थानक - समवाय के उपरान्त अनेकोत्तरिका वृद्धि - समवाय साठ सूत्रों में (सूत्र ४५१ से ५१०) तीर्थंकर, देवलोक, पर्वत, चक्रवर्ती, कुलकर आदि महत्त्वपूर्ण विषय जिनकी * संख्या सार्धशत से कोटा - कोटि पर्यन्त बतायी गई है, व्यवहृत है । तदनंतर अध्येयताओं व अनुसंधित्सुओं के लिए द्वादशांग गणि-पिटक सूत्र ५११ से ५७४ तक अर्थात् ६३ सूत्रों में आचारांग सूत्र, सूत्रकृतांग सूत्र, स्थानांग सूत्र, समवायांग सूत्र, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत एवं दृष्टिवाद के बारे में भी संक्षिप्त रूप से वर्णन हुआ है। इसके उपरान्त ५२ सूत्रों में (सूत्र संख्या ५७६ से ६२८ तक) जीवाजीव राशियाँ, अनुत्तरोपपातिक देव, नारकजीव, रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों प्रभृति विविध विषय निरूपित हैं । अन्त में (सूत्रांक ६२९ से ६७७ तक) ४८ सूत्रों में अतीतअनागतकालिक महापुरुषों का विवेचन परिलक्षित है। इस प्रकार ‘समवायांग सूत्र' में स्थानक - समवाय स्तर पर अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का वर्णन हुआ है जिनका अध्ययन कर अध्येयता निश्चित रूप से ज्ञानार्णव में अवगाहन कर अपने जीवन को सार्थक क करने के लिए सम्प्रेरित होगा । इसके अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण विषयों को रोचक बनाने के लिए तथा अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिए विषयानुरूप रंगीन भावपूर्ण चित्रों को भी संजोया गया है। हिन्दी भावानुवाद के साथ-साथ अंग्रेजी अनुवाद की प्रस्तुति भी प्रस्तुत आगम के प्रकाशन की अभिनव विशेषता कही जा सकती है, जो आधुनिक नई पीढ़ी के स्वाध्यायियों के लिए विशेषरूप से परम उपयोगी सिद्ध होगी । आराध्य गुरुदेव उत्तरभारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द जी म. की प्रेरणा - प्रकाश में प्रारंभ हुआ यह श्रुत-यज्ञ अपनी संपन्नता की दिशा में धीरे- धीरे आगे बढ़ रहा है। स्वास्थ्य कारणों से इस कार्य की गति मन्थर तो अवश्य हुई है परन्तु अवरुद्ध नहीं हुई । इस का पूरा श्रेय मेरे गुरुदेव के आशीष को ही है। साथ ही प्रिय सुशिष्य श्रुत सेवा निष्ठ मुनिवर वरुण का सतत अप्रमत्त सहयोग इस कार्य को * आगे बढ़ा रहा है। इनकी सेवा, गुरुभक्ति और श्रुतनिष्ठा किसी भी गुरु को संतोष देने वाली है। इसके अतिरिक्त हिन्दी - अंग्रेजी अनुवादन, संपादन तथा प्रकाशन आदि कार्यों से जुड़े समस्त सहयोगियों को साधुवाद प्रदान करते हुए कलम को विश्राम देता हूं। // viii // 编编编编编编编编 -अमर मुनि ( उत्तरभारतीय प्रवर्तक, श्रुताचार्य) 卐 新! 编编编编编编编编编编
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy