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बाईसवां समवाय
The Twenty Second Samvaya १५०-वावीसं परीसहा पण्णत्ता, तं जहा-दिगिंछापरीसहे १, पिवासापरीसहे २, सीतपरीसहे ३, उसिणपरीसहे ४, दंसमसगपरीसहे ५, अचेलपरीसहे ६, अरइपरीसहे ७, इत्थीपरीसहे ८, चरिआपरीसहे ९, निसीहिआपरीसहे १०, सिज्जापरीसहे ११, अक्कोसपरीसहे १२, वहपरीसहे १३, जायणापरीसहे १४, अलाभपरीसहे १५, रोगपरीसहे १६, तणफासपरीसहे १७, जल्लपरीसहे १८, सक्कारपुरक्वारपरीसहे १९, पण्णापरीसहे २०, अण्णाणपरीसहे २१, अदंसणपरीसहे २२। ___बाईस परीषह (कर्म-निर्जरा हेतु भूख-प्यास, शीत-उष्ण, डांस-मच्छर आदि बाधाओं या कष्टों को समतापूर्वक सहना) निरूपित हैं। यथा - १. दिगिच्छा (बुभुक्षा) परीषह, २. पिपासा परीषह, ३. ॐ शीत परीषह, ४. उष्ण परीषह, ५. दंशमशक परीषह, ६. अचेल परीषह, ७. अरति परीषह, ८. स्त्री के परीषह, ९. चर्या परीषह, १०. निषद्या परीषह, ११. शय्या परीषह, १२. आक्रोश परीषह, १३. वध | परीषह, १४. याचना परीषह, १५. अलाभ परीषह, १६. रोग परीषह, १७. तृण स्पर्श परीषह, १८. जल्ल परीषह, १९. सत्कार-पुरस्कार परीषह, २०. प्रज्ञा परीषह, २१. अज्ञान परीषह, २२. अदर्शन परीषह।
The number of afflictions has been stated as twenty two. In order to destroy Karma one should bear with equanimity the hunger and thirst induced pains, warm and cold and the mosquitoes and flies induced obstructions. They are:- 1. Affliction of hunger, 2. Affliction of thirst, 3. Affliction of cold, 4. Affliction of heat, 5. Affliction of insects bites, 6. Affliction of nudity, 7. Affliction of nonabsorption, 8. Femininitive Afflictions, 9. Affliction of movement and conduct, 10. Affliction of sitting, 11. Affliction of bed, 12. Affliction of exasperation, 13. Affliction of killing, 14. Affliction of seeking alms, 15. Affliction of not gaining in alms, 16. Affliction of disease, 17. Affliction of straw sting touch, 18. Affliction of ailment, 19. Affliction of infatuation due to honour and getting prizes, 20. Affliction of knowledge, 21. Affliction of ignorance, 22. Affliction of non-faith.
१५१-दिट्ठिवायस्स णं वावीसं सुत्ताई छिन्नछेयणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए, वावीसं सुत्ताई अच्छिन्नछे यणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडीए, वावीसं सुत्ताई तिकणइयाई तेरासियसुत्तपरिवाडीए, वावीसं सुत्ताई चउक्कणइयाइं समयसुत्तपरिवाडीए। ___बारहवाँ अंग दृष्टिवाद है। इसमें बाईस सूत्र स्वसमय सूत्र परीपाटी से छिन्न-छेदनयिक हैं। बाईस सूत्र आजीविक सूत्र परिपाटी से अच्छिन्न-छेदनयिक हैं। इसी प्रकार त्रैराशिक सूत्र परिपाटी से नयत्रिक सम्बन्धी बाईस सूत्र हैं। चार नयों (सूत्र संग्रह, व्यवहार, ऋजु सूत्र और शब्दादित्रिक) की अपेक्षा से बाईस सूत्र चतुष्कनयिक कहे गए हैं। बाईसवां समवाय
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Samvayang Sutra