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________________ 新卐卐卐卐卐卐 १४४-एक्वीसं सबला पण्णत्ता, तं जहा - हत्थकम्मं करेमाणे सबले १, मेहुणं पडिसेवमाणे सबले २, राइभोअणं भुंजमाणे सबले ३, आहाकम्मं भुंजमाणे सबले ४, सागारियं * पिंडं भुंजमाणे सबले ५, उद्देसियं कीयं आहट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले ६, अभिक्ख पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाणे सबले ७, अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गणं संकममाणे सबले ८, अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले ९, अंतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले १०, रायपिंडं भुंजमाणे सबले ११, आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले १२, आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले १३, आउट्टियाए आदिण्णादाणं गिण्हमाणे सबले १४, आउट्टियाए अणंतरहिआए पुढवीए ठाणं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले १५, एवं आउट्टिआ चित्तमंताए पुढवीए, एवं आउट्टिआ चित्तमंताए सिलाए कोलावासंसि वा दारुए अण्णयरे वा तहप्पगारे ठाणं * वा सिज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले १६, जीवपइट्ठिए सपाणे सबीए सहरिए सउत्तिंगे * पणग- दग-मट्टी-मक्कडासंताणए तहप्पगारे ठाणं वा सिज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले १७, आउट्टिआए मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा तयाभोयणं वा, पवालभोयणं वा पुप्फभोयणं वा फलभोयणं वा हरियभोयणं वा भुंजमाणे सबले १८, अंतो संवच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे सबले १९, अंतो संवच्छरस्स दस माइठाणाइं सेवमाणे सबले २०, अभिक्खणं अभिक्खणं सीतोदयवियडवग्घारियपाणिणा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहित्ता भुंजमाणे सबले २१ । 卐 इक्कीसवां समवाय The Twenty First Samvaya इक्कीस प्रकार के शबल दोष - चारित्र को कर्बुरित, मलिन या धब्बों से दूषित करने वाले दोष निरूपित हैं। यथा – १. हस्त मैथुन करने वाला शबल, २. स्त्री आदि के साथ मैथुन सेवन करने वाला शबल, ३. रात में भोजन करने वाला शबल, ४. आधा-कर्मिक भोजन को सेवन करने वाला शबल, ५. शय्यातर (स्थान-दाता) यानि सागारिक का भोजन - पिंड ग्रहण करने वाला शबल, ६. औद्देशिक, बाजार से क्रीत (खरीदे गए) और अन्यत्र से लाकर दिए गए यानि अभ्याहृत भोजन को खाने वाला * शबल, ७. बार-बार प्रत्याख्यान अर्थात् परित्याग कर पुनः उसी वस्तु का प्रयोग या सेवन करने वाला शबल, ८. षड्मास (छह माह) के भीतर एक गण से दूसरे गण में जाने वाला शबल, ९. एक माह के भीतर तीन बार नाभि-प्रमाण जल में अवगाहन या प्रवेश करने वाला शबल, १०. एक माह के भीतर तीन बार माया स्थान को सेवन करने वाला शबल, ११. राजपिण्ड खाने वाला शबल, १२. जानझ बूझकर पृथ्वी आदि जीवों का घात करने वाला शबल, १३. जानबूझकर असत्य वचन का प्रयोग करने वाला शबल, १४. जान-बूझकर बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण करने वाला शबल, १५. जान-बूझकर 89 समवायांग सूत्र 21th Samvaya 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐出 事
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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