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________________ % % % % % % %% % %% %% % % % %% % % % % % % % % %% % % % %% half months means nine & a half months. They desire for food once after the interval of nineteen thousand years. There the beings who are capable of salvation (Bhavsidhik jeeva). They would take only nineteen births in future. After it they will attain salvation. These beings destroying all their accumulated karmas of previous lives would achieve their goal of Param Nirvan (absolute truth). Eventually, they will annihilate all their mistakes and sufferings in the end. । उन्नीसवां समवाय समाप्त । ( The End of Nineteenth Samvaya) %% % % % % % % % % %% % %% %% बीसवां समवाय The Twentieth Samvaya ___१४०-वीसं असमाहिठाणा पणत्ता, तं जहा-दवदवचारि यावि भवइ १, 5 अप्पमज्जियचारि यावि भवइ २, दुप्पमज्जियचारि यावि भवइ ३, अतिरित्तसेज्जाणिए ४, , रातिणियपरिभासी ५, थेरोवघाइए ६, भूओवघाइए ७, संजलणे ८, कोहणे ९, पिट्ठिमंसिए १०, अभिक्खणं अभिक्खणं ओहारइत्ता भवइ ११, णवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं | उप्पाएत्ता भवइ १२, पोराणाणं अधिकरणाणं खामिअ विउसविआणं पुणोदीरत्ता भवइ १३, ससरक्खपाणिपाए १४, अकालसज्झायकारए यावि भवइ १५, कलहकरे १६, सद्दकरे १७, झंझकरे १८, सूरप्पमाणभोई १९, एसणाऽसमिते आवि भवइ २०। बीस असमाधिस्थान (जिन कार्यों को करने से स्वयं के या दूसरों के चित्त में संक्लेश उत्पन्न हो) निरूपित हैं। यथा - १. दव-दव या धपधप करते हुए जल्दी-जल्दी तीव्र गति से चलना या गतिमान होना, २. अप्रमार्जितचारी होना, ३. दुष्प्रमार्जितचारी होना, ४. अतिरिक्त शय्या आसन रखना, ५. रालिक साधुओं का पराभव करना, ६. स्थविर साधुओं को दोष लगाकर उनका उपघात या अपमान करना, ७. भूतों (एकेन्द्रिय जीवों) का व्यर्थ उपघात करना, ८. सदा रोषयुक्त प्रवृत्ति करना, ९. अति क्रोध करना, १०. पीठ पीछे दूसरे का अवर्णवाद करना, ११. निरन्तर सदा ही दूसरों के गुणों का विलोप करना, जो व्यक्ति दास या चोर नहीं है, उसे दास या चोर आदि कहना, १२. नित्य नए अधिकरणों जैसे कलह अथवा यन्त्रादिकों को उत्पन्न करना, १३. क्षमा किए हुए या उपशान्त हुए अधिकरणों यानि लड़ाई-झगड़ों को पुनः पुनः जागृत करना, १४. सरजस्क यानि सचेतन धूलि आदि से सम्पृक्त अर्थात् सरजस्क हाथ वाले व्यक्ति से भिक्षा ग्रहण करना और सरजस्क स्थंडिल आदि पर चलना, सरजस्क आसनादि पर बैठना, १५. काल का विचार न करते हुए अकाल में स्वाध्याय करना और काल में स्वाध्याय न करना, १६. कलह करना, १७. रात्रि में उच्च स्वर से स्वाध्याय और वार्तालाप समवायांग सूत्र ___85 20th Samvaya 事功 助 %%%%%% %%%%%%%%% %%%%%%%% %%%%% % % % % % %% % % % % % % % % % % % % % %
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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