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________________ | अत्थेगइयाणं देवाणं सत्तरस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। महासुक्के कप्पे देवाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। पाँचवीं व छठी पृथ्वियों में नारकों की स्थितियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि पाँचवीं | पृथ्वी जो धूम प्रभा के नाम से अभिहित है उसमें कितने ही नारकों की उत्कृष्ट स्थिति सत्रह सागरोपम है। इसी प्रकार छठी पृथ्वी जो तम:प्रभा के नाम से अभिहित है, उसमें किन्हीं-किन्हीं नारकों की जघन्य स्थिति सत्रह सागरोपम है। सत्रह पल्योपम स्थिति के असुरकुमार देव कहे गए हैं। सौधर्म-ईशान कल्पों के कितने ही देव सत्रह पल्योपम स्थिति वाले हैं। महाशुक्र कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति के सत्रह सागरोपम कही गई है। It has been described while illustrating the life duration of the hellish beings of the fifth and sixth hells that the fifth hell described as Dhumprabha hell the maximum life span of the hellish beings of this area is seventeen Sagropama duration and some of the hellish beings of tamah-pretha the sixth hell have the minimum lifespan equal to seventeen Sagropama duration. Some malevalent demons have been stated to have the life span of seventeen Palyopama duration. The celestial beings of the Sodharma and Ishan kalpa have the life duration of seventeen Palyopama. The maximum life duration of the celestial beings of the Mahashukra kalpa has been said of seventeen Sagropama. १२४-सहस्सारे कप्पे देवाणं जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा सामाणं सुसामाणं महासामाणं पउमं महापउमं कुमुदं महाकुमुदं नलिणं महानलिणं पोंडरीअं | महापोंडरीअं सुक्कं महासुक्कं सीहं सीहकंतं सीहवीअं भाविअं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा सत्तरसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा, उस्ससंति वा नीससंति वा। तेसि णं देवाणं सत्तरसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे सत्तरसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। सहस्रार कल्प के देव सत्रह सागरोपम जघन्य स्थिति वाले कहे गए हैं। वहाँ देव विशिष्ट विमानों # में देवरूप से उत्पन्न होते हैं। उन विशिष्ट विमानो की संख्या सत्रह कही गई है। यथा - १. सामान | F/ विमान, २. सुसामान विमान, ३. महासामान विमान, ४. पद्म विमान, ५. महापद्म विमान, ६. कुमुद | विमान, ७. महाकुमुद विमान, ८. नलिन विमान, ९. महानलिन विमान, १०. पौण्डरीक विमान, ११. महापौण्डरीक विमान, १२. शुक्र विमान, १३. महाशुक्र विमान, १४. सिंह विमान, १५. सिंहकान्त विमान, म १६. सिंहबीज विमान, १७. भावित विमान । वे देव सत्रह सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति वाले होते हैं। वे 76 सतरहवां समवाय %% %% %% % ( Samvayang Sutra % %% %% %% %% % % %% % %% %% % %% %% %
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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