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________________ %% %%%%% % %%% % %% %%% %%%%%%% %%%% %% % % % पंद्रहवां समवाय The Fifteenth Samvaya १०१-पन्नरस परमाहम्मिआ पण्णत्ता, तं जहा अंबे २अंबरिसी चेव सामे सबलेत्ति आवरे । 'रुद्दो विरुद्द "काले अ “महाकालेत्ति आवरे ।।१।। असिपत्ते °धणु कुम्भे वालुए वे १३अरणी ति अ। १४खरस्सरे १५महाघोसे एते पन्नरसाहिआ।।२।। परम अधार्मिक देवों के विषय में कहा गया है कि इन देवों की संख्या पन्द्रह है। यथा - १. अम्ब परम अधार्मिक देव (नारकों को खींचकर उनके स्थान से नीचे गिराना और बाँधकर खुले आकाश में छोड़ देना), २. अम्बरिषी परम अधार्मिक देव (नारक को गंडासों से काट-काट कर भाड़ में पकाने के योग्य टुकड़े-टुकड़े कर डालना), ३. श्याम परम अधार्मिक देव (नारकों को कोड़ों से तथा हाथ के प्रहार आदि से मारना-पीटना), ४. शबल परम अधार्मिक देव (नारकों को चीर-फाड़ कर उनके शरीर से आंत, चर्बी, हृदय आदि निकालना), ५. रुद्र परम अधार्मिक देव (नारकों को भालेबर्छ आदि से छिन्न-भिन्न कर ऊपर लटकाना), ६. उपरुद्र परम अधार्मिक देव (अत्यन्त क्रूरता के साथ भाले-बर्छ आदि से नारकों के शरीर को छेदन-भेदन कर ऊपर लटकाना), ७. काल परम अधार्मिक देव (नारकों को कण्डु आदि में पकाना), ८. महाकाल परम अधार्मिक देव (नारकों के पके मांस को टुकड़े-टुकड़े कर खाना), ९. असि पत्र परम अधार्मिक देव (सेमल वृक्ष का रूप धारण कर इस वृक्ष के नीचे छाया हेतु आने वाले नारकों को तलवार की धार के सदृश तीक्ष्ण पत्ते गिराकर कष्ट पहुँचाना), १०. धनु परम अधार्मिक देव (धनुष द्वारा छोड़े गए तीक्ष्ण नोक वाले वाणों से नारकियों के अंगों का छेदन-भेदन करना), ११. कुम्भ परम अधार्मिक देव (नारकों को कम्भ आदि में पकाना). १२. वालका है * परम अधार्मिक देव (वालु, कदम्ब पुष्प और वज्र के आकार-रूप धारण कर उष्ण वालु में, गर्म भाड़ * में चने के समान नारकों को भनना). १३. वैतरणी परम अधार्मिक देव (पीव, रक्त आदि से भरी हुई | तप्त जल वाली नदी का रूप धारण करके प्यासे नारकों को क्षार उष्ण जल से पीड़ा पहुँचाना), १४. + खरस्वर परम अधार्मिक देव (वज्रमय कंटकाकीर्ण सेमल वृक्ष पर नारकों को बार-बार चढ़ाना-उतारना), क | १५. महाघोष परम अधार्मिक देव (भय से भागते हुए नारकियों को बाड़ों में घेरकर उन्हें नाना प्रकार की यातनाएँ देना)। It has been said while describing the Paramadharmik gods (extraordinary irreligious gods) that the numbers of these gods are fifteen as :- 1. Ambparamadharmik dev (they fell the hellish beings pulling them down from 61 समवायांग सूत्र 步步步步步步步步步勇%% 15th Samvaya % % % % %% % % %% %% % %% %% % %
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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