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समर्पण
जिनकी ज्ञान प्रभा अज्ञान अन्धकार को दूर कर ज्ञान प्रकाश से जीवन को तेजस्वी बनाती हैं। जिनकी आचार निष्ठा तीर्थंकर महावीर का स्मरण कराती है। जिनकी अखण्ड श्रद्धा भक्ति संयम पथिक को दृढाती हैं। ऐसे देवों और मानवों के पूज्य, प्राणी मात्र के रक्षक, जन जन के आराध्य परम पूज्य गुरूवर्य आचार्य सम्राट श्री आत्मारामजी महाराज को असीम आस्था के साथ, उन्हीं के द्वारा व्याख्यात श्री नन्दीसूत्र का नवीन संस्करण, त्वदीयं ' वस्तु तुभ्यमेव समर्पये।
सुव्रत मुनि शास्त्री, - एम०ए०, पी०एच०डी०