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वर्ग--वर्ग भी अध्ययनों के समूह को ही कहते हैं, अन्तकृत्सूत्र में आठ वर्ग हैं । अनुत्तरोपपातिक में तीन वर्ग और ज्ञाताधर्मकथा के दूसरे श्रुतस्कन्ध में दस वर्ग हैं ।
दशा-दश अध्ययनों के समूह को दशा कहते हैं। जिनके जीवन की दशा प्रगति की ओर बढी, उसे भी दशा कहते हैं, जैसे कि उपासकदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, अन्तकृद्दशा, इन तीन दशाओं में इतिहास है । जिस दशा में इतिहास की प्रचुरता नहीं, अपितु आचार की प्रचुरता है, वह दशाश्रुतस्कन्ध है, इस सूत्र में दशा का प्रयोग अन्त में न करके आदि में किया है।
शतक-भगवती सूत्र में अध्ययन के स्थान पर शतक का प्रयोग किया गया है । अन्य किसी आगम में शतक का प्रयोग नहीं किया।
स्थान-स्थानाङ्ग सूत्र में अध्ययन के स्थान पर स्थान शब्द का प्रयोग किया है। इसके पहले स्थान में एक-एक विषय का, दूसरे में दो-दो का यावत् दसवें में दस-दस विषयों का क्रमशः वर्णन किया गया है।
समवाय -समवायाङ्ग सूत्र में अध्ययन के स्थान पर समवाय का प्रयोग किया है, इस में स्थानाङ्ग - की तरह संक्षिप्त शैली है, किन्तु विशेषता इस में यह है कि एक से लेकर करोड़ तक जितने विषय हैं, . उनका वर्णन किया गया है। स्थानाङ्ग और समवायाङ्ग को यदि आगमोंकी विषयसूचि कहा जाए तो अनुचित न होगा।
प्राभृत-दृष्टिवाद, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति इन में प्राभृत का प्रयोग अध्ययन के स्थान में किया है और उद्देशक के स्थान पर प्राभृतप्राभृत ।
पद-प्रज्ञापना सूत्र में अध्ययन के स्थान में सूत्रकार ने पद का प्रयोग किया है, इसके ३६ पद हैं। इस में अधिकतर द्रव्यानुयोग का वर्णन है ।
प्रतिपत्ति-जीवाभिगमसूत्र में अध्ययन के स्थान पर प्रतिपत्ति का प्रयोग किया हुआ है। इस का अर्थ होता है-जिन के द्वारा पदार्थों के स्वरूप को जाना जाए, उन्हें प्रतिपत्ति कहते हैं-प्रतिपद्यन्ते यथार्थमवगम्यन्तेऽर्था आभिरिति प्रतिपत्तयः ।
___ वक्षस्कार-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र में अध्ययन के स्थान पर वक्षस्कार का प्रयोग किया हुआ है। इस का मुख्य विषय भूगोल और खगोल का है। भगवान ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती का इतिहास भी वर्णित है। . उद्देशक-अध्ययन, शतक, पद और स्थान इन के उपभाग को उद्देशक कहते हैं। आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, भगवती,, स्थानाङ्ग, व्यवहारसूत्र, वृहत्कल्प, निशीथ, दशवकालिक, प्रज्ञापनास्त्र और जीवाभिगम इन सूत्रों में उद्देशकों का वर्णन मिलता है।
अध्ययन-जैनागमों में अध्याय नहीं अपितु अध्ययन का प्रयोग किया हुआ है और उस अध्ययन का नाम निर्देश भी । अध्ययन के नाम से ही ज्ञात हो जाता है कि इस अध्ययन में अमुक विषय का वर्णन है। यह विशेषता जैनागम के अतिरिक्त अन्य किसी शास्त्र-ग्रन्थ में नहीं पाई जाती । आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशाङ्ग. अन्तकृद्दशाङ्ग, अनुत्तरोपपातिक, प्रश्नव्याकरण, विपाक, उत्तराध्ययन, दशवकालिक, आवश्यक और निरियावलिका आदि ५ सूत्र तथा नन्दी इन में आगमकारों ने अध्ययन का प्रयोग किया है।