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________________ द्वादशाङ्ग परिचय छाया - अथ कास्ता उपासकदशा ? उपासकदशासु श्रमणोपासकानां नगराणि, उद्यानानि चैत्यानि, वनखण्डानि, समवसरणानि, राजानो, मातापितरः, धर्माचार्याः, धर्मकथा:, ऐहलौकिक - पारलौकिका ऋद्धिविशेषाः, भोगपरित्यागाः प्रव्रज्या, श्रुतपरिग्रहाः, तपउपधानानि, शील- व्रत - गुण- विरमण- प्रत्याख्यान- पौषधोपवास-प्रतिपादनता, प्रतिमाः, उपसर्गाः संलेखनाः, भक्तप्रत्याख्यानानि, पादपोपगमनानि, देवलोकगमनानि, सुकुलप्रत्यायातयः, पुनर्बोधिलाभाः, अन्तक्रियाश्चाख्यायन्ते । ३१५ • उपासकदशानां परीता वाचनाः, संख्येयान्यनुयोगद्वाराणि संख्येया वेढाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येया निर्युक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः । ता अंगार्थतया सप्तममङ्गम्, एकः श्रुतस्कन्धः, दशाऽध्ययनानि, दशोद्देशन कालाः, दशसमुद्देशनकालाः, संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण, संख्येयान्यक्षराणि, अनन्ता गमाः, अनन्ता पर्यवाः, परीतास्त्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत - कृत - निबद्ध निकाचिता जिन- प्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते, प्ररूप्यन्ते, दर्श्यन्ते, निदर्श्यन्ते, उपदर्श्यन्ते । स एवमात्मा, एवं ज्ञाता एवं विज्ञाता एवं चरण-करण - प्ररूपणाऽऽख्यायते, ता एता उपासकदशाः ।। सूत्र ५२ ।। भावार्थ - शिष्य ने प्रश्न किया- भगवन् ! वह उपासकदशा नामक श्रुत किस प्रकार है ? आचार्य बोले— भद्र ! उपासकदशा में श्रमणोपसकों के नगर, उद्यान, व्यन्तरायतन, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इस लोक और परलोक की ऋद्धि विशेष, भोगपरित्याग, दीक्षा, संयम की पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, शीलव्रत- गुणव्रत, विरमण-व्रत - प्रत्याख्यान, पौधोपवास का धारण करना, प्रतिमा का धारण करना, उपसर्ग, संलेखना अनशन, पादपोपगमन, देवलोकगमन, पुनः सुकुल में उत्पत्ति, पुनः बोधि - सम्यक्त्व का लाभ और अन्तक्रिया इत्यादि विषयों का वर्णन है । उपासकदशा की परिमित वाचनाएं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ — छन्दविशेष, संख्यात श्लोक, संख्यात निर्युक्तिएं, संख्यात संग्रहणियां और संख्यात प्रतिपत्तिएं हैं। वह अंग की अपेक्षा से सातवां अंग है, उसमें एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, दस उद्देशन काल दस और समुद्देशन काल हैं। पदा परिमाण से संख्यातसहस्र पद हैं । संख्यात अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय, परिमित त्रस तथा अनन्त स्थावर हैं। शाश्वत कृत- निबद्धनिकाचित जिन प्रतिपादित भावों का सामान्य और विशेषरूप से कथन, प्ररूपण, प्रदर्शन, निदर्शन, और उपदर्शन किया गया है ।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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