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________________ द्वादशाङ्ग-परिचय आचाराङ्ग के पठन का साक्षात् एवं परम्परा का फल वर्णन करते हुए कहा - इस के पठन से अज्ञान की निवृत्ति होती है, यह साक्षात् फल है । तदनुसार क्रियानुष्ठान करने से आत्मा तद्रूप अर्थात् ज्ञान-विज्ञानरूप हो जाता है अथवा उन भावों का पूर्ण ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है । इसी प्रकार उक्त सूत्र में चरण-करण की प्ररूपणा की गई है। कर्मों की निर्जरा, कैवल्य प्राप्ति, सर्व दुखों से सर्वथा और सदा के लिए मुक्त हो जाना अपुनरावृत्तिरूप सिद्ध गति को प्राप्त होना, इस शास्त्र के पठन-पाठन का परम्परागत फल है ।। सूत्र ४६ ॥ २३७ २. श्रीसूत्रकृताङ्ग मूलम् — से किं तं सूत्रगडे ? सूत्रगड़े णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोप्रालोए सूइज्जइ, जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जंति, जीवाजीवा सूइज्जंति, समए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, ससमए-परसमए सूइज्जइ । सूगडे णं असीस किरियावाईसयस्स, चउरासीइए अकिरिश्रावाईणं, सत्तट्ठी अण्णाणि वाईणं, बत्तीसाए वेणइ वाईणं, तिन्ह तेसद्वाणं पासंडि सयाणं बूहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ । सूगडे णं परित्ता वायणा, संखिज्जा प्रणुघोगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्ती, संखिज्जा पडिवत्ती । से णं अंगट्टयाए बिइए अंगे, दो सुक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं उद्दे सणकाला, तित्तीसं समुद्दे सणकाला, छत्तीसं पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, श्रणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयas - निबद्ध -निकाइया जिणपण्णत्ता भावा प्राघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति । से एवं प्रया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण परूवणा आघविज्जइ । से त्तं सूगडे ॥ सूत्र ४७ ॥ 1 छाया - अथ किं तत् सूत्रकृतम् ! सूत्रकृते लोकः सूच्यते, अलोकः सूच्यते, लोकालोको सूच्येते, जीवा सूच्यन्ते, अजीवाः सूच्यन्ते, जीवाऽजीवाः सूच्यन्ते, स्वसमयः सूच्यते, परसमयः सूच्यते, स्वससय-परसमयाः सूच्यन्ते । सूत्रकृते — अशीत्यधिकस्य क्रियावादिशतस्य, चतुरशीतेरक्रियावादिनाम्, सप्तषष्टेरज्ञा
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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