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आधि-व्याधि को हरण करने वाला अचूक नुस्खा है। सर्व दुःखों को ऐकान्तिक एवं आत्यन्तिक क्षय करने वाला यदि विश्व में कोई ज्ञान है, तो वह आगमज्ञान ही है । नन्दीसूत्र में उपर्युक्त सभी उपमाएं तथा दिव्य ओषधिएं घटित हो जाती है। इसकी आराधना करने से तीन गुप्तिएं गुप्त हो जाती हैं तथा तीन शल्य जड़मूल से उखड़ जाते हैं, वे तीन शल्य निम्नलिखित हैं
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१. मायाशल्य - व्रतों में जितने अतिचार लगते हैं, जिन दोषों से मूलगुण तथा उत्तरगुण दूषित होते हैं, उनमें माया की मुख्यता होती हैं किसी की आंख में धूल झोंक कर व्रतों को दूषित करना, चारित्र में मायाचारी करना, लोगों में उच्च क्रिया दिखाना और गुप्त रूप में दोषों का सेवन करना, दोषों का सेवन माया से किया जाता है। जब शक्ति और भावना के अनुरूप क्रिया की जाती है तब माया का सेवन नहीं होता। माया का उन्मूलन आलोचना करने से हो जाता है।
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२. निदानशल्य - रूप, बल, सत्ता, ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए देवत्व तथा वैषयिक तृप्ति के लिए उपार्जन किए हुए संयम-तप के बदले उपर्युक्त वस्तुओं की इच्छा रखना, नश्वर सुख के लिए तप-संयम इसका अर्थ यह हुआ, उसे मोक्ष सुख की आवश्यकता नहीं तप-संयम के बदले इहभविक तथा पारभाविक बेच देना । भौतिकसुख की कामना करना ही, निदान है, यह भी आत्मा को जन्म जन्मान्तर में चुभे हुए कांटे वेचैन बनाए रखते हैं ।
३. मिथ्यादर्शनशास्य यह भी आध्यात्मिक रोग है, इससे आत्मा सदा रुग्ण और अशान्त रहता है । इससे वैराग्य, संयम, तप सदाचार, स्वाख्यात-धर्म, ये सब व्यर्थ एवं ढोंग मालूम देते हैं। उससे बुद्धि में नास्तिकता, हृदय में कलुष्यता, वैषयिक सुख में आसक्ति, प्रभु से विमुखता, धर्म और मोक्ष से पराईमुखता होती है । मिथ्यादृष्टि का लक्ष्य बिन्दु अर्थ और काम ही होता है, वह कभी उनकी प्राप्ति और वृद्धि के लिए पुष्प की साधना भी कर लेता है। ये सब मिथ्यादर्शन के दुष्परिणाम हैं। तीनों शल्प संसार की वृद्धि करने वाले हैं, भव-भ्रमण कराने वाले हैं, पापों में लगाने वाले हैं, दुर्गति में भटकाने वाले हैं।
आलोचना करने से और नन्दीसूत्र की आराधना करसे ने उपर्युक्त सभी शल्यों का उद्धरण हो जाता है । जैसे चुभे हुए कांटे के निकालने से शान्ति हो जाती है, वैसे ही तीन शल्यों को निकालने से आत्मा सम्यग्दर्शन और व्रतों का आराधक बन जाता है तथा श्रुतज्ञान का भी नन्दी अनन्त सुखों
और सभी प्रकार के
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का भण्डार है और मोक्ष सुख का कारण एवं साधन है, विजय का अमोघ साधन है भयों से सर्वथा मुक्त करने वाला है आगम तो सचमुच दर्पण है, जिसके अध्ययन करने से अपने में छुपे अवगुण स्पष्ट झलकने लग जाते हैं। आत्मा को परमात्मपद की ओर प्रेरणा करने वाले परमगुरु आगम ही हैं । आगम-ज्ञान से ही मन और इन्द्रियां समाहित रहती हैं ।
आगम-ज्ञान आत्मा में अद्भुत शक्ति स्फुर्ति अप्रमत्तता को जगाता है। नन्दी सूत्र आत्मगुणों की सूची है । इसके अध्ययन करने से अन्तःकरण में वीतरागता जगती है । क्लेश, मनोमालिन्य, हिंसा विरोध इन सबका शमन सहज में ही हो जाता है ।
इसी दृष्टिकोण को लक्ष्य में रखकर पूर्वाचार्यों ने जहां तक उनका वंश चला, वहां तक आगमों को
१. निशस्योमती तत्त्वार्थ सू० ० ० ० १३