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________________ २८६ नन्दीसूत्रम् से पूर्व जो उपदेश दिया था, यह उसी का संकलित सूत्र है। इन ३६ अध्ययनों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है, १ सैद्धान्तिक, २ नैतिक व सुभाषितात्मक, और ३ कथात्मक, इनका विस्तृत वर्णन उक्त सूत्र में है। प्रत्येक अध्ययन अपना विशिष्ट स्थान रखता है। निशीथ-रात्रि में जब प्रकाश की परमावश्यकता अनुभव हो रही हो, तब वह प्रकाश कितना सुखप्रद होता है, इसी प्रकार अतिचार रूप अन्धकार को दूर करने के लिए यह सत्र प्रायश्चित्त रूपी प्रकाश का काम देता है । ___ अचूलिका–आचारांग आदि अंगों की चूलिका । चूलिका का अर्थ होता है, उक्त, अनुक्त अर्थों का संग्रह । यह सूत्र अंगों से सम्बन्धित है । जैसे कि-- ___ "अंगस्य प्राचारादेश्चूलिका अङ्गवूलिका, चूलिका नाम उक्तानुकार्थसंग्रहास्मिका ग्रन्थपद्धतिः ।" आचारांग सूत्र की पांच चूलिकाएं हैं । एक चूलिका दृष्टिवादान्तर्गत भी है। वर्गचूलिका-जैसे अन्तकृत् सूत्र के आठ वर्ग हैं, उनकी चूलिका । अनुत्तरौपपातिकदशा-इसमें तीन वर्ग हैं, उनकी चूलिका । व्याख्या-चूखिका-भगवती सूत्र की चूलिका। अरुणोपपात–जब उक्त सूत्र का पाठ कोई मुनि उपयोग पूर्वक करता है, तब अरुणदेव जहां पर वह मुनि अध्ययन कर रहा है, वहां पर आकर उस अध्ययन को सुनता है । अध्ययन समाप्ति पर वह देव कहता है-हे मुने ! आपने भली प्रकार से स्वाध्याय किया है, आप मेरे से कुछ स्वेच्छया वर याचना करो । तब मुनि निःस्पृह होने से उत्तर में कहता है-हे देव ! मुझे किसी भी वर की इच्छा नहीं । है। इससे देव प्रसन्न होकर निःस्पृह, संतोषी मुनि को सविधि वन्दन करके चला जाता है। यही भाव चूर्णिकार के शब्दों में झलकते हैं, जैसे कि "जाहे तमज्झयणं उवउत्ते समाणे अणगारे परियट्टइ, ताहे से अरुणदेवे समयनिवद्धत्तणो चलियासणसंभमुम्भंतलोयणे, पउत्तावही, वियाणियटे, पह? चल ववलकुण्डलधरे, दिव्वाए जुइए दिवाए विभूईए, दिव्वाए गईए, जेणामेव से भयवं समणे निग्गन्थे अज्झयणं परियट्टमाणे अच्छइ, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तिभरोणयवयणे विमुक्कवरकुसुमगन्धवासे प्रोबयइ, ओयइत्ता ताहे से समणस्स पुरनो ठिरुचा अन्तट्टिए कयंजली उवउत्ते संवेगविसुज्झमाणज्मवसाणेणं अज्झयणं सुणमाणे चिटइ, सम्मत्ते अज्मायणे भणइ भयवं! सुसज्झाइयं २, वरं वरेहि त्ति। ____ताहे से इह लोयनिप्पिवासे समतिण-मुत्ताहल, लेटुकचणे, सिद्धि वर-रमणि पहिबद्ध निम्भराणुरागे, समणे पडिभणइ-न मे णं भो! वरेणं अट्ठो त्ति, ततो से अरूणो देवे अहिगयर जायसंवेगेपयाहिणं करेत्ता वंदह नमसह वंदित्ता नमॅसित्ता पडिगच्छइ।" इसी प्रकारवरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वेलंधरोपपात देवेन्द्रोपपात सूत्रों का भाव भी समझ लेना चाहिए । उत्थानश्रुत-इसमें उच्चाटन का वर्णन किया गया है, जैसे कि कोई मुनि किसी ग्राम आदि में बैठा हुआ क्रोधयुक्त होकर इस श्रुत को एक दो व तीन बार यदि पढ़ ले, तो ग्रामादि में उच्चाटन हो जाता है, जैसे कि चूर्णिकार जी लिखते हैं "सजेगस्स कुलस्स वा गामस्स वा नगरस्स वा रायहाणीए वा समाणे कयसंकप्पे प्रासुरुत्ते चण्डिकिए
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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