SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० नन्दीसूत्रम् नम्र प्रार्थना है कि यदि आप के भंडार में अथवा अजायब घर में नमूने के रूप में पुरानी बालुकामथी डोरी हो, तो वह दे दीजिए, तदनुसार डोरी बनाने का हम प्रयत्न करेंगे और आप की सेवा में भेज देंगे।" ग्राम वासियों ने राजा को रोहक की बताई हुई युक्ति कह सुनाई। रोहक की चमत्कृति बुद्धि से राजा निरुत्तर हो गया। ७. हस्ती-राजा ने अन्य किसी दिन एक अति वृद्ध मरणासन्न हाथी उस नट ग्राम में भेज दिया। ग्रामीणों को आज्ञा दी-"इस हाथी की यथाशक्य सेवा करो, प्रतिदिन इस का समाचार मेरे पास भेजते रहना। हाथी मर गया या मरण प्रायः हो रहा है, ऐसी बात न कहना अत्यथा तुम्हें दण्डित किया जाएगा।" इस प्रकार राजा के आदेश को सुनकर सभी लोग रोहक के पास पहुंचे और राजा की आज्ञा कह सुनाई। रोहक ने इस का उपाय बतलाया-"इस हाथी को अच्छी २ खुराक देते रहो, सेवा करते रहो पीछे जो कुछ होगा मैं उसे समझ लूंगा।" रोहक की आज्ञा से ग्रामीणों ने हाथी को उसके अनुकूल खुराक दी, परन्तु वह रात को ही मर गया। तब रोहक के कथन-अनुसार ग्रामवासियों ने मिलकर राजा से निवेदन किया- "हे नरदेव ! आज हाथी न उठता है, न बैठता है, न खाना खाता है, न लीद करता है, न सांस लेता है, न चेष्टा करता है, न देखता है, न सुनता है और अधिक क्या कहें, आधी रात से बिल्कुल निष्क्रिय पड़ा है, यह आज का समाचार है।" राजा ने उनसे कहा- क्या वह हाथी मर गया ?" ग्रामीणों ने कहा-"राजन !ऐसा तो आप श्री ही कह सकते हैं, हम लोग नहीं।" यह बात सुन कर राजा चुप हो गया और ग्रामवासी सहर्ष अपने घर लौट आए। ८. अगड-कूप- अन्य किसी दिन राजा ने फिर आदेश जारी किया कि "तुम्हारे वहाँ जो सुस्वादुशीतल-पथ्य जल पूर्ण कूप है, उस को जहाँ तक हो सके शीघ्र यहाँ भेज दो, अन्यथा तुम दण्ड के भागी बनोगे।" राजा के इस आदेश को सुन कर सभी लोग इस अनहोनी आज्ञा से चिन्ताग्रस्त होकर रोहक के पास आए और उस का उपाय रोहक से पूछने लगे। रोहक ने कहा-"राजा के पास ऐसा जाकर कह दो कि कूप ग्रामीण होने से स्वभाव से ही भीरु है, स्वजातीय के बिना वह किसी पर विश्वास भी नहीं करता । अत एव एक नागरिक कूप भेज दीजिए, जिसपर विश्वास करके वह कूप उसके साथ यहां तक चला आयगा।" रोहक के कथनानुसार उन्होंने राजा से वैसे ही निवेदन किया। राजा रोहक की बुद्धि की प्रशंसा मन ही मन में करता हुआ चुप हो गया। ६. वन-खण्ड-कुछ दिनों के पश्चात् राजा ने ग्रामवासियों के लिए हुक्म जारी किया-"जो वनखण्ड आजकल ग्राम के पूर्व दिशा में है उसे पश्चिम दिशा में कर दो।" ग्रामीण लोग चिन्तामग्न होकर रोहक के पास आए । रोहक ने अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि बल से कहा- "इस ग्राम को वनखण्ड के पूर्व दिशा में बसालो, वनखण्ड स्वयं पश्चिम दिशा में हो जायेगा।" उन्होंने वैसे ही किया। राजा का आदेश पूरा हो गया, यह देख कर राजकर्मचारियों ने राजा से निवेदन कर दिया। राजा ने सोचा यह रोहक की बुद्धि का ही अद्भुत चमत्कार है।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy