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________________ नन्दीसूत्रम् गतेनाऽवधिज्ञानेन मार्गतश्चैव संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा योजनानि जानाति पश्यति । पार्श्वतोऽन्तगतेनाऽवधिज्ञानेन पार्वतश्चैव संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा योजनानि जानाति पश्यति । मध्यगतेनाऽवधिज्ञानेन सर्वतः समन्तात् संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा योजनानि जानाति पश्यति । तदेतदानुगामिकमवधिज्ञानम् ॥सूत्र १०॥ पदार्थ-अंतगयस्स–अन्तगत का य-और मझगय —मध्यगत का को-क्या पइविसेसोप्रति-विशेष है ? पुरो अंतगएणं-पुरतोऽन्तगत प्रोहिनाणेगां—अवधिज्ञान से •पुरो चेव-आगे से च-पुनः और एवं-अवधारणार्थ में है संखिज्जाणि वा-संख्यात अथवा असंखिज्जाणि वा असंख्यात . जोयणाई-योजन में अवगाढ द्रव्य को जाणइ-विशिष्ट ज्ञानात्मा से जानता है, पासइ-सामान्यग्राही आत्मा से देखता है। मग्गो अंतगएणं- पीछे अन्तगत ओहिनाणेणं-अवधिज्ञान से मग्गो चेत्र-पीछे से ही संखिज्जाणि वा–संख्यात वा, असंखिज्जाणि वा-असंख्यात जोयणाई-योजनों में स्थित द्रव्य को जाणइ-विशेष रूप से जानता है, पासइ-सामान्यरूप से देखता है, मज्भगएणं-मध्यगत प्रोहिनाणेणं अवधिज्ञान से सम्वनो-सर्वदिशा-विदिशा में समंता सर्व आत्म प्रदेशों से वा-सर्वविशुद्ध स्पर्द्धकों से संखिज्जाणि वा–संख्यात वा असंखिज्जाणिवा असंख्यात जोयणाई-योजनों में स्थित द्रव्यों को जाणाविशेष रूप से जानता है, पासइ-सामान्यरूप से देखता है। से तं प्राणुगामियं-यह आनुगामिक प्रोहिनाणं अवधिज्ञान है। भावार्थ-शिष्य ने पूछा-गुरुदेव ! अन्तगत और मध्यगत अवधिज्ञान में क्या प्रतिविशेष है ? ___ गुरुने उत्तर दिया-पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान से ज्ञाता आगे से संख्यात या असंख्यात योजनों में अवगाढ़ द्रव्यों को विशिष्ट ज्ञानात्मा से जानता है और सामान्य ग्राहक आत्मा से देखता है। मार्ग से-पीछे से अन्तगत अवधिज्ञान द्वारा पीछे ही संख्यात वा असंख्यात योजनों में स्थित द्रव्यों को विशेष रूप से जानता है और सामान्यरूप से देखता है। पार्श्व से अन्तगत अवधिज्ञान से पार्श्वगत स्थित द्रव्य को संख्यात व असंख्यात योजनों में विशेषरूप से जानता और सामान्यरूप से देखता है। मध्यगत अवधिज्ञान से सर्वदिशाओं और विदिशाओं में सर्वप्रदेशों द्वारा सर्वविशुद्ध स्पर्द्धकों से संख्यात व असंख्यात योजनों में स्थित द्रव्य को विशेषरूप से जानता है और सामान्यरूप से देखता है । इस प्रकार आनुगामिक अवधिज्ञान का वर्णन है।। टीका-अन्तगत और मध्यगत अवधिज्ञान में परस्पर क्या अन्तर है ? इस विषय का प्रस्तुत सूत्र मे सविस्तर वर्णन किया गया है। उपर्युक्त सूत्र में अन्तगत अवधिज्ञान के तीन भेद बतलाए गए हैं, जैसे कि-पुरतः मार्गतः, (पृष्टतः) और पार्वतः । अन्तगत अवधिज्ञान चार दिशाओं में से किसी एक दिशा की ओर क्षेत्र को प्रकाशित करता है । जिस आत्मा को, अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है, वह उसी दिशा की ओर संख्यात व असंख्यात योजन में स्थित रूपी द्रव्यों को जानता व देखता है, किन्तु मध्यगत अवधिज्ञान से आत्मा सर्व दिशाओं और विदिशाओं में संख्यात व असंख्यात योजन पर्यन्त स्थित रूपी पदार्थों को विशेष
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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