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घर 14. जो भिक्षु नाव को नौ-दंड (चप्पू) से, नौका पप्फिडक (नौका चलाने के उपकरण विशेष) से, घर
बाँस से या बल्ले से चलाता है अथवा चलाने वाले का समर्थन करता है। 15. जो भिक्षु नाव में से भाजन द्वारा, पात्र द्वारा, मिट्टी के बर्तन द्वारा या नाव उसिंचनक द्वारा पानी
निकालता है अथवा निकालने वाले का समर्थन करता है। 16. जो भिक्षु नाव के छिद्र में से पानी आने पर या नाव को डूबती देखकर हाथ से, पैर से, पीपल के
पत्ते (पत्र समूह) से, कुस के पत्ते (कुससमूह) से, मिट्टी से या वस्त्रखंड से उसके छेद को बंद
करता है अथवा बंद करने वाले का समर्थन करता है। 17. नाव में रहा हुआ भिक्षु नाव में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है
अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 18. नाव में रहा हुआ भिक्षु जल में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है और
अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 19. नाव में रहा हुआ भिक्षु कीचड़ में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता
है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 20. नाव में रहा हुआ भिक्षु भूमि पर रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता
है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 21. जल में रहा हुआ भिक्षु नाव में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है
अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 22. जल में रहा हुआ भिक्षु जल में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है
अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 23. जल में रहा हुआ भिक्षु कीचड़ में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता
है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 24. जल में रहा हुआ भिक्षु भूमि पर रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है
है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। कीचड़ में रहा हुआ भिक्षु नाव में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता
है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 26. कीचड़ में रहा हुआ भिक्षु जल में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता
है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 27. कीचड़ में रहा हुआ भिक्षु कीचड़ में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण
करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। प्र 28. कीचड़ में रहा हुआ भिक्षु भूमि पर रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण
करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है।
निशीथ सूत्र
(312)
Nishith Sutra