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घर श्रमण या श्रमणी द्वारा एक-दूसरे का शरीर-परिकर्म ग्रहस्थ से करवाने का प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT THE MONKS AND NUNS FOR GETTING THEIR BODIES WASHED FROM
THE HOUSEHOLDER 53 15-68. जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स पाए अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज ____वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा साइज्जइ।
एवं तइय उद्देसगगमेण णेयव्वं जाव जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स गामाणुगाम दूइज्जमाणस्स
अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीसदुवारियंकारावेइ, कारावेंतं वा साइज्जइ। और 15-68. जो निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थों के पैरों का अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से एक बार या बार-बार आमर्जन
करवाती है अथवा करवाने वाली का समर्थन करती है।
इस प्रकार तीसरे उद्देशक के (सूत्र 16 से 69) के समान पूरा आलापक जानना चाहिए यावत् जो ठे निर्ग्रन्थी ग्रामानुग्राम जाते हुए निर्ग्रन्थ के मस्तक को अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से ढकवाती है अथवा
ढकवाने वाली का समर्थन करती है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 15-68. The monks and nuns who get their bodies washed from the householder and the
non-believer once or repeatedly or supports the ones who does so.
In the same way the entire statement should be known similar to sutra No. 16 to 69 & i.e. as the nun while going from one village to another gets the monks head covered by
a householder or a non-believer or supports the ones who gets her head to be covered
so, a laghu-chaumasi expiation comes to her. 3569-122. जेणिग्गंथे णिग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज
वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं साइज्जइ। एवंतइय उद्देसगगमेणणेयव्वंजावजेणिग्गंथेणिग्गंथीए गामाणुगामंदूइज्जमाणीए अण्णउत्थिएण
वा गारथिएण वा सीसदुवारियं कारावेइ, कारावेंतं वा साइज्जइ। 369-122. जो निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी के पैरों का अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से एक बार या बार-बार आमर्जन
करवाता है अथवा करवाने वाले का समर्थन करता है।
इस प्रकार तीसरे उद्देशक के समान पूरा आलापक जानना चाहिए यावत् जो निर्ग्रन्थ ग्रामानुग्राम घरे जाती हुई निर्ग्रन्थी के मस्तक को अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से ढकवाता है अथवा ढकवाने वाले का र समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) 69-122. The monks and nuns who get their legs washed from a householder or the
non-believer once or repeatedly or supports the ones who gets to be washed so.
Thus it should be known similar to the statement of third chapter as the monk who going from one village to another village gets the nuns head to be covered from a house holder or a non-believer or supports the ones who gets done so (laghu chaumasi expiation comes to him).
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सत्रहवाँ उद्देशक
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Seventeenth Lesson