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2. The ascetic who speaks harsh language to some other ascetic or supports the ones
who speaks so.. The ascetic who speaks language full of anger and the harsh language to some other ascetic or supports the ones who speaks so. The ascetic who behaves mischievously of some sort towards another ascetic, or
supports the ones who does so, a laghu-chaumasi atonement comes him. सचित्त अंब-उपभोग सम्बन्धी प्रायश्चित्त
THE REPENTANCE PERTAINING TO CONSUMPTION OF LIVE MANGOES 85. जे भिक्खू सचित्तं अंबं भुंजइ, भुंजंतं वा साइज्जइ। और 6. जे भिक्खू सचित्तं अंबं विडंसइ, विडंसंतं वा साइज्जइ।
7. जे भिक्खू सचित्त-पइट्ठियं अंबंभुंजइ, भुंजंतं वा साइज्जइ। पूरे 8. जे भिक्खू सचित्त-पइट्ठियं अंबं विडंसइ, विडंसंतं वा साइज्जइ। 9. जे भिक्खू सचित्तं-1. अंबं वा, 2. अंब-पेसिं वा, 3. अंब-भित्तं वा, 4. अंब-सालगं वा,
5. अंबडगलं वा, 6. अंबचोयगंवा भुंजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। पूरे 10. जे भिक्खू सचित्तं अंबं वा जाव अंबचोयगंवा विडंसइ, विडंसंतं वा साइज्जइ। कर 11. जे भिक्खू सचित्त-पइट्ठियं अंबंवा जाव अंबचोयगंवा भुंजइ, भुंजतं वा साइज्जइ। पर 12. जे भिक्खू सचित्त-पइट्ठियं अंबं वा जाव अंबचोयगंवा विडंसइ, विडंसंतं वा साइज्जइ।
5. जो भिक्षु सचित्त आम खाता है अथवा खाने वाले का समर्थन करता है। 6. जो भिक्षु सचित्त आम चूसता है अथवा चूसने वाले का समर्थन करता है।
7. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित आम खाता है अथवा खाने वाले का समर्थन करता है। 388. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित आम चूसता है अथवा चूसने वाले का समर्थन करता है। पूरे 9. जो भिक्षु सचित्त 1. आम को, 2. आम की फांक को, 3. आम के अर्द्धभाग को, 4. आम के
छिलके को (अथवा आम के रस को), 5. आम के गोल टुकड़ों को, 6. आम की केसराओं को
(अथवा आम के छिलकों को) खाता है अथवा खाने वाले का समर्थन करता है। 10. जो भिक्षु सचित्त आम को यावत् आम की केसराओं को चूसता है अथवा चूसने वाले का समर्थन
करता है। 11. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित आम की यावत् आम की केसराओं को खाता है अथवा खाने वाले का
समर्थन करता है। घरे 12. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित आम को यावत् आम की केसराओं को चूसता है अथवा चूसने वाले
का समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) 5. The ascetic who consumes the “Sachit” mangoes or supports the ones who eats so. पन्द्रहवाँ उद्देशक
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Fifteenth Lesson