________________
The ascetic who teaches skills, reciting prayers, playing marbles, fighting, composing couplet to the householder or non-believer or supports the ones who does so a
laghu-chaumasi repentance comes to him. गृहस्थ को फरूष वचन आदि कहने के प्रायश्चित्त
THE REPENTANCE OF SPEAKING HARSH AND RUDE LANGUAGE TO THE HOUSEHOLDER ल 13. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा आगाढं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ। १14. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा फरुसं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ। * 15. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा आगाढं-फरुसं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ। 0 16. जेभिक्खू अण्णउत्थियंवा गारस्थियं वा अण्णयरीए अच्चासायणाए अच्चासाएइ, अच्चासाएंतं
वा साइज्जइ। 13. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को आवेशयुक्त वचन कहता है अथवा कहने वाले का समर्थन
करता है। घर 14. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को कठोर वचन कहता है अथवा कहने वाले का समर्थन करता है। 15. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को आवेशयुक्त कठोर शब्द कहता है अथवा कहने वाले का
समर्थन करता है। 16. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ की किसी प्रकार की आशातना करता है अथवा करने वाले का
समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) 13. The ascetic who speaks the language full of wrath or supports the ones who speaks
so. 83 14. The ascetic who speaks harsh language to the householder or non-believer or
supports the ones who speaks so. 15. The ascetic who speaks harsh language in a fit of anger to the householder or a ___non-believer or supports the ones who does so.
The ascetic who misbehaves in any form with the householder or the non-believer
or supports the ones who does so- a laghu-chaumasi expiation comes to him. घरे कौतुक कर्म आदि के प्रायश्चित्त # REPENTANCE OF CURIOUS ACTIONS
17. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा कोउगकम्मं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। 20 18. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारस्थियाण वा भूइकम्मं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ।
19. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। अरे 20. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणापसिणं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ।
21. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा तीयं निमित्तं कहेइ, कहेंतं वा साइज्जइ। पारे। तेरहवाँ उद्देशक
(231)
Thirteenth Lesson