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घर विवेचन-भिक्षु को अत्यन्त अल्प उपधि रखने का आगम में विधान है। जिनको भिक्षु स्वयं सहज ही र उठाकर विहार कर सकता है। उपधि सम्बन्धी विस्तृत विवेचन सोलहवें उद्देशक के सूत्र 39 में देखें।
Comments-There is a law of keeping very few articles, in the Agamas, by which the ascetic can travel carrying them himself. For the elaborate analysis regarding the implements and articles see in 39th sutra of sixteenth chapter. महानदी पार करने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF CROSSING THE GREAT RIVERS 44. जे भिक्खू इमाओ पंच महण्णवाओ महाणईओ उद्दिट्ठाओ, गणियाओ जियाओ, अंतोमासस्स
दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरइ वा, संतरइ वा, उत्तरंतं वा संतरंतं वा साइज्जइ। तं जहा-1. गंगा, 2. जउणा, 3. सरयू, 4. एरावई, 5. मही।
तंसेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं। 44. गंगा, जमुना, सरयु, ऐरावती और माही ये पाँच महानदियाँ कही गई हैं, गिनाई गई हैं, प्रसिद्ध हैं,
इनको जो भिक्षु एक मास में दो बार या तीन बार पैदल पार करता है या नाव आदि से पार करता है अथवा पार करने वाले का समर्थन करता है। Ganga, Yamuna, Saryu, Airavati, and Mahi these five rivers are great rivers. The ascetic who crosses these rivers on foot twice or thrice during a month or crosses through boat or supports the ones who does so. इन 44 सूत्रोक्त स्थानों का सेवन करने वाले साधु/साध्वी को लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।
To the ascetic in following the actions mentioned in Sutra No. 44 above, a laghuchaumasi atonement comes to him.
विवेचन-मासकल्प विहोण सकृत् कल्पतेएव उत्तरिंतु। तस्मिन्नेव मासे द्वि-तृतीय वारा प्रतिषेधः।-चूर्णि। पर मासकल्प विहार की अपेक्षा एक महीने में एक बार एक नदी उतरना कल्पता है किन्तु उसी महीने में परे दो-तीन बार उतरना नहीं कल्पता है। घरे आठ महीनों में कुल नौ बार उतरने पर प्रायश्चित्त नहीं आता है। जिसमें प्रथम महीने में दो बार और शेष रे सात महीनों में एक-एक बार नदी पार की जा सकती है।
पाँच नदियों के कथन से शेष बड़ी नदियाँ भी सूचित की गई हैं। प्राचीन काल के विचरण क्षेत्र में ये पाँच घर प्रमुख नदियाँ कभी नहीं सूखती थी और प्रसिद्ध थीं। अतः सूत्र में इनका नाम और संख्या का निर्देश है। उपलक्षण से जिस समय जो बड़ी नदियाँ हों, उन्हें भी समझ लेना चाहिए।
भिक्षु को उत्सर्ग विधान के अनुसार जल का स्पर्श करना भी नहीं कल्पता है। किन्तु विहार में नदी पार करना पड़े तो यह अपवादिक विधान है। बृहत्कल्पभाष्य में तथा निशीथभाष्य में इस विषय के अपवाद और विवेक र का विस्तृत विवेचन किया गया है। स्थलमार्ग में कितना चक्कर हो तो कितने जल मार्ग से जाना, उसमें भी
पृथ्वीकाय, हरी-घास, फूलन आदि के आधार पर अनेक विकल्प किए हैं। ___ प्रायश्चित्त में भी अनेक विकल्प दिए हैं। नाव व कुंभादि से तैरने की विधि भी बताई गई है। इसके लिए भाष्य का अध्ययन करना चाहिए।
बारहवाँ उद्देशक
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Twelfth Lesson