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41. The ascetic who accepts the clothes after beginning of the chaturmas or supports
the ones who accepts so. To apply above said 41 sutras the Guru-Chumasi expiation comes to him.
सूत्र 1-4
सूत्र5
सूत्र 6 सूत्र 7-8 सूत्र 9-10 सूत्र 11-12 सूत्र 13 सूत्र 14 सूत्र 15-18 सूत्र 19-24
सूत्र 25-28 सूत्र 29 सूत्र 30-33 सूत्र 34-35 सूत्र 36-37 सूत्र 38 सूत्र 39 सूत्र 40. सूत्र 41
उद्देशक का सारांश THE SUMMARY OF THE CHAPTER TENTH आचार्य या रत्नाधिक श्रमण को कठोर, रूक्ष या उभय वचन कहे तथा किसी भी प्रकार की आशातना करे। अनंतकाय-संयुक्त आहार करे। आधाकर्म दोष का सेवन करे। वर्तमान या भविष्य सम्बन्धी निमित्त कहे। शिष्य का अपहरण आदि करे। दीक्षार्थी का अपहरण आदि करे। आगन्तुक साधु के आने का कारण जाने बिना आश्रय देना। कलह उपशांत न करने वाले के या प्रायश्चित्त न करने वाले के साथ आहार करे। प्रायश्चित्त का विपरीत प्ररूपण करे या विपरीत प्रायश्चित्त दे। प्रायश्चित्त सेवन, उसके हेतु और संकल्प को सुनकर या जानकर भी उस भिक्षु के साथ आहार करे। सूर्योदय या सूर्यास्त के संदिग्ध होने पर भी आहार करे। रात्रि के समय मुख में आए उद्गाल को निगल जावे। ग्लान की सेवा न करे अथवा विधिपूर्वक सेवा न करे। चातुर्मास में विहार करे। पर्युषण (संवत्सरी) निश्चित दिन न करे और अन्य दिन करे। पर्युषण के दिन तक लोच न करे। पर्युषण के दिन चौविहार उपवास न करे। पर्युषणकल्प गृहस्थों को सुनावे। ' चातुर्मास में वस्त्र ग्रहण करे। ऐसी प्रवृत्तियों का गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। To speak harsh or rough languages or both against the preceptor or a learned ascetic and to do any sort of misbehaviour. To take food full of Infinite leaving bodies. to apply the fault of Adhakarma. to forecast related to present or future. to kidnap the newly consecrated monk. to kidnap the ones who is yet to be consecrated.
Sutra 1-4.
Sutra 5. Sutra 6. Sutra 7-8. Sutra 9-10. Sutra 11-12
निशीथ सूत्र
(188)
Nishith Sutra