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ग्लान की सेवा में प्रमाद करने का प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF SHOWING LAXITY IN THE SERVICE OF ILL ASCETICS
30. जे भिक्खू गिलाणं सोच्चा णच्चा ण गवेसइ, ण गवेसंतं वा साइज्जइ ।
31. जे भिक्खू गिलाणं सोच्चा णच्चा उम्मग्गं वा पडिपहं वा गच्छइ, गच्छंतं वा साइज्जइ ।
32. जे भिक्खू गिलाण - वेयावच्चे अब्भुट्ठिए सएण लाभेण असंथरमाणे जो तस्स ण पडितप्पड़, पडितप्तं वा साइज्जइ ।
33. जे भिक्खू गिलाण - वेयावच्चे अब्भुट्ठिए गिलाण - पाउग्गे दव्वजाए अलब्भमाणे, जो तं पडियाइक्खड़, ण पडियाइक्खंतं वा साइज्जइ ।
30. जो भिक्षु ग्लान साधु का समाचार सुनकर या जानकर उसका पता नहीं लगाता है अथवा पता नहीं लगाने वाले का समर्थन करता है।
31. जो भिक्षु ग्लान साधु का समाचार सुनकर या जानकर ग्लान भिक्षु की ओर जाने वाले मार्ग को छोड़कर दूसरे मार्ग से या प्रतिपथ से (जिधर से आया उधर ही) चला जाता है अथवा जाने वाले का समर्थन करता है।
32. जो भिक्षु ग्लान की सेवा में उपस्थित होकर अपने लाभ से ग्लान का निर्वाह न होने पर समीप जाकर खेद प्रकट नहीं करता है अथवा नहीं करने वाले का समर्थन करता है।
33. जो भिक्षु ग्लान की सेवा में उपस्थित होकर उसके योग्य औषध, पथ्य आदि नहीं मिलने पर उसको आकर नहीं कहता है अथवा नहीं कहने वाले का समर्थन करता है। ( उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
30. The ascetic who knowing or hearing the news of the ill ascetic does not locate him or supports the one who does not search so.
31. The ascetic who knowing or hearing the news of the ill ascetic leaving the path leading towards the ill ascetic goes in another direction or returns or supports the ones who goes so.
32. The ascetic who, presenting himself in the service of ill ascetic, does not express regrets over not caring the ill ascetic due to his own benefit or supports the ones who does not do so.
33. The ascetic who even by attending the ailing ascetic does not say to him about the medicines which are not available for his use or supports the ones who does not say so, a Guru-Chaumasi expiation comes to him.
वर्षाकाल में विहार करने पर प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF TRAVELLING DURING THE RAINY SEASON (CHATURMAS)
34. जे भिक्खू पढम- पाउसम्मि गामाणुगामं दूइज्जइ, दूइज्जंतं वा साइज्जइ । 35. जे भिक्खू वासावासं पज्जोसवियंसि गामाणुगामं दूइज्जइ, दूइज्जतं वा साइज्जइ ।
निशीथ सूत्र
(184)
Nishith Sutra