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अंक में पल्यंक-निषद्यादि करने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF DOING UNDESIRABLE ACTIVITIES WITH LIMBS 76. जेभिक्खूमाउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंकसि वा, पलियंकसि वाणिसीयावेज्ज वा, तुयट्टावेज्ज
वा, णिसीयावेंतं वा, तुयट्टावेत वा साइज्जइ। 7 . जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंकसिवा, पलियंकसि वा णिसीयावेत्ता वा, तुयट्टावेत्ता ही
वा,असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अणुग्घासेज्ज वा अणुप्पाएज्ज वा, अणुग्घासंतं वा
अणुप्पाएंतं वा साइज्जइ। 76. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को अर्धपल्यंक आसन में या पूर्ण 21
पल्यंकासन में गोद में बिठाता है अथवा बिठाने वाले का समर्थन करता है। रे 77. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को एक जंघा पर या पर्यंकासन में बिठाकर
या सुलाकर अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य खिलाता या पिलाता है अथवा खिलाने-पिलाने वाले
का समर्थन करता है। (उसे गुरूचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) 76. With the desire of sexual intercourse the ascetic who makes the woman to sit in his
half lap or full lap or supports the ones who makes to sit so. 77. With the desire of sexual intercourse the ascetic who makes the woman to sit, or
gets slept on thigh or the laps makes her to eat food, water, sweet and tasty food or supports the ones who does so, a Guru-chaumasik expiration comes to him. धर्मशाला आदि में निषद्यादिकरण प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF MAKING THE ACTIVITIES OF "NISHADHYA DIKARAN IN DHARAMSHALAB 78. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, और ___परियावसहेसुवा,णिसीयावेज्ज वा, तुयट्टावेज्ज वा,णिसीयावेंतं वा, तुयट्टावेंतं वा साइज्जइ। घरे 79. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आगंतारेसु वा, आरामागारेसुवा, गाहावइकुलेसु वा, र
परियावसहेसु वा, णिसीयावेत्ता वा, तुयट्टावेत्ता वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा
अणुग्घासेज्ज वा, अणुपाएज्ज वा, अणुग्घासंतंवा, अणुपाएंतंवा साइज्जइ। 78. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को धर्मशाला में, बगीचे में, गृहस्थ के घर
में या परिव्राजक के स्थान में बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाने या सुलाने वाले का समर्थन
करता है। 79. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को धर्मशाला में, बगीचे में, गृहस्थ के घर
में या परिव्राजक के स्थान में बिठाकर या सुलाकर अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य खिलाता या और पिलाता है अथवा खिलाने-पिलाने वाले का समर्थन करता है। (उसे गुरूचौमासी प्रायश्चित्त घरे आता है।)
निशीथ सूत्र
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Nishith Sutra