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पूर्व में प्रथम तीन छेदसूत्रों - श्री दशाश्रुतस्कंध, श्री बृहत्कल्प एवं व्यवहार सूत्र का प्रकाशन हो चुका है। अब अंग्रेजी अनुवाद एवं रंगीन चित्रों के साथ नए रूप में निशीथ सूत्र का नवीन संस्करण आपके हाथों में है।
इस आगम के सम्पादन में युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म. के हिन्दी विवेचन तथा अनेक विद्वानों द्वारा सम्पादित तथा व्याख्यात विवेचन का लाभ उठाते हुए मैंने अपनी बुद्धि एवं ज्ञान लब्धि के अनुसार इन सूत्रों का अनुवाद/विवेचन प्रस्तुत किया है। वैसे तो निशीथ का विषय बड़ा ही गहन है। इसमें वर्णित तथ्य, साधु समाचारी, वर्तमान श्रमण समाचारी पर अनेक स्थानों पर विचारणीय बिन्दु भी प्रस्तुत करते हैं परन्तु फिर भी विवादस्पद तथा आक्षेपात्मक विषयों से बचकर मैंने तटस्थता के साथ उन विषयों का स्पष्टीकरण किया है। यदि कहीं पर भी मेरे द्वारा कोई भूल हुई हो अथवा जिनवाणी के प्रतिकूल कोई बात लिख दी हो तो उसके लिए भूल सुधार की भावना के साथ मिच्छामि दुक्कडं व्यक्त करता हूँ।
वैश्वीकरण के इस युग में हमारे युवकों को हिन्दी का अक्षर ज्ञान कम होता जा रहा है और अंग्रेजी भाषा के प्रति उनका रुझान बढ़ रहा है। अत: सरल भावानुसारी अंग्रेजी अनुवाद द्वारा इस आगम साहित्य को और भी अधिक उपयोगी एवं रुचिप्रद बना दिया है जो आज की युवा पीढ़ी के अंदर शास्त्र पठन की प्यास जगाने एवं आत्मानुभूति की ललक जागृत करने हेतु उपयोगी सिद्ध होगा ।.
आगम सम्पादन के इस महत्वपूर्ण कार्य का निर्वहन मेरे पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक भंडारी श्री पद्मचंद जी म. की प्रेरणा एवं कृपा से हो रहा है। पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद सदा की भाँति मेरे साथ सम्बल के रूप में रहा है।
प्रस्तुत आगम के सम्पादन में मेरे शिष्य आगम रसिक श्री वरुण मुनि जी एवं स्व. श्री श्रीचन्द सुराना 'सरस' के सुपुत्र श्री संजय सुराणा का आत्मीय सहयोग विशेष रूप से रहा है। इन सभी को सस्नेह साधुवाद !
पूज्य गुरुदेव की कृपा से आगम सेवा करने वाले गुरुभक्तों ने इस प्रकाशन में हर वर्ष की भाँति दिल खोलकर अपना सहयोग दिया है। उन्हीं के सहयोग के बल पर ही संस्था यह व्यय साध्य प्रकाशन कर रहीं है। इस प्रकार इस कार्य में जिन-जिन महानुभावों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग प्राप्त हुआ है, मैं उन सबके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। आशा है कि अंग्रेजी अनुवाद के साथ यह सचित्र निशीथ सूत्र श्रुत उपासक मुमुक्षुओं को न केवल सद्धर्म आचरणाभिमुख बनायेगा अपितु आत्मदर्शन कराने में भी सहायक सिद्ध होगा ।
लुधियाना
जैन स्थानक,
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- प्रवर्त्तक अमर मुनि