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सूत्र-23 सूत्र-24
सूत्र-25 सूत्र-26
सूत्र-27
सूत्र-28 सूत्र-29 सूत्र-30
सूत्र-31
सूत्र-32 सूत्र-33-36 सूत्र-37
सूत्र-38
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सूत्र-39 सूत्र-40
सूत्र-41
कृत्स्न वस्त्र धारण करना। अभिन्न वस्त्र धारण करना। तुम्बे के पात्र का, काष्ठ के पात्र का और मिट्टी के पात्र का स्वयं परिकर्म करना। दण्ड आदि को स्वयं सुधारना। स्वजन-गवेषित पात्र ग्रहण करना। परजन-गवेषित पात्र ग्रहण करना। प्रमुख-गवेषित पात्र ग्रहण करना। बलवान-गवेषित पात्र ग्रहण करना। लव-गवेषित पात्र ग्रहण करना। नित्य अग्रपिण्ड लेना। दानपिंड लेना। नित्य वास वसना। भिक्षा के पूर्व या पश्चात् दाता की प्रशंसा करना। भिक्षाकाल के पहले आहार के लिए घरों में प्रवेश करना।
अन्यतीर्थिक के साथ, गृहस्थ के साथ, पारिहारिक का अपारिहारिक के साथ भिक्षा के लिए प्रवेश करना। इन तीनों के साथ उपाश्रय से बाहर की स्वाध्याय भूमि में या उच्चार-प्रस्रवणभूमि में प्रवेश करना। इन तीनों के साथ ग्रामानुग्राम विहार करना। मनोज्ञ पानी पीना, कसैला पानी परठना। मनोज्ञ आहार खाना, अमनोज्ञ आहार परठना। खाने के बाद बचा हुआ आहार सांभोगिक साधुओं को पूछे बिना परठना। सागारिक पिण्ड ग्रहण करना। सागारिक पिण्ड खाना। सागारिक का घर आदि जाने बिना भिक्षा के लिए जाना। सागारिक की निश्रा से आहार प्राप्त करना या उसके हाथ से लेना। शेष काल के शय्या-संस्तारक की उल्लंघन करना। चातुर्मास काल के शय्या-संस्तारक की अवधि का उल्लंघन करना। वर्षा से भीगते हुए शय्या-संस्तारक को छाया में न रखना। शय्या-संस्तारक को दूसरी बार आज्ञा लिए बिना अन्यत्र ले जाना। प्रातिहारिक शय्या-संस्तारक लौटाए बिना विहार करना। शय्यातर का शय्या-संस्तारक पूर्व स्थिति में किए बिना विहार करना। शय्या-संस्तारक खोए जाने पर न ढूँढ़ना।
सूत्र-42 सूत्र-43
सत्र-44
सूत्र-45 सूत्र-46 सूत्र-47 सूत्र-48 सूत्र-49
सूत्र-50
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द्वितीय उद्देशक
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Second Lesson