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The ascetic who has accepted Shayya Samsttaraka for a left over period or for rainy season seeing the shayya samsttaraka is drenching in rain, does not remove it, or supports the ones who does not remove the wetting shayya samsttaraka in rain, a laghumasik expiation comes to him.
विवेचन-इस सूत्र का आशय यह है कि शय्या-संस्तारक आदि प्रत्यर्पणीय कोई भी उपधि वर्षा आदि से भीग रही है, ऐसी जानकारी होते ही उसे हटाकर सुरक्षित स्थान में रखना कल्पता है और नहीं हटाना यह प्रायश्चित्त र का कारण है।
स्वयं की उपधि को तो कोई भी भीगने देना नहीं चाहता किन्तु पुनः लौटाने योग्य शय्या-संस्तारक आदि को है भीगते हुए देखकर भी हटाने में उपेक्षा होने की ज्यादा संभावना होने से उसका निर्देश सूत्र में किया गया है। फिर भी र उपलक्षण से सभी प्रकार की उपधि के विषय में समझ लेना चाहिए।
Comments—The meaning of the aphorism is that none likes to see that his implements may get wet in rain, but, the again, returnable Shayya Samsttaraka of the housholder, the possibility of deficiency in not removing it after seeing wetting in rain, this sutra applies so.
शय्या-संस्तारक बिना आज्ञा अन्यत्र ले जाने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF CARRYING THE SHAYYA SAMSTARAKA WITHOUT PERMISSION 53. जे भिक्खू पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जा-संथारयं दोच्चंपि अण्णुण्णवेत्ता बाहिं कू
णीणेइ,णीणेतंवा साइज्जइ। 53. जो भिक्षु प्रत्यर्पणीय (अन्य किसी से लाए गए) या शय्यातर से ग्रहण किए गए शय्या-संस्तारक
को पुनः आज्ञा लिए बिना कहीं अन्यत्र ले जाता है अथवा ले जाने वाले का समर्थन करता है।
(उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 53. The ascetic who gets carried the accepted Shayya Samstaraka at other place from
the Shayyatara or worthy of giving back; takes it away to other place without the permission of Sayyatara or supports the ones who carries so, a laghu-masik expiation comes to him.
विवेचन-यहाँ सागारियसंतिय शब्द का प्रयोग साधु के ठहरने के स्थान में जो शय्या-संस्तारक हो, उसके घर लिए हुआ है और अन्यत्र ले जाए जाने वाले शय्या-संस्तारक के लिए "पाडिहारिय' शब्द का प्रयोग हुआ है। ये सर दोनों ही प्रत्यर्पणीय हैं।
जो शय्या-संस्तारक जिस मकान में रहने की अपेक्षा ग्रहण किया है, उसे किसी कारण से अन्य मकान में ले रे जाना हो तो उसके मालिक की आज्ञा पुनः लेना आवश्यक है। अन्यत्र से लाए गए शय्या-संस्तारक का मालिक भी प्रायः साधु के ठहरने के स्थान को ध्यान में रखकर ही देता है तथा शय्यातर भी अपने मकान में उपयोग लेने की अपेक्षा से ही देता है। इसलिए पुनः आज्ञा प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है। बिना आज्ञा लिए अन्यत्र ले जाने में अदत्त दोष लगता है तथा उसके मालिक का नाराज होना, निंदा करना, शय्या-संस्तारक का दुर्लभ होना आदि दोषों की संभावना भी रहती है। इसलिए इसका लघुमासिक प्रायश्चित्त कहा गया है।
निशीथ सूत्र
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Nishith Sutra