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चलता ही रहता है । इन अनंत भवों में हम अनंत बार एक-एक गतिमें हो आए हैं । अनंत बार तिर्यंच गति में गए और अनंत बार पशु-पक्षियों के जन्म धारण किये । इसी प्रकार अन्य गतिओं के विषय में भी समझें मनुष्य गति में मनुष्य के भव भी जीव ने अनेक बार किये हैं ।
नमस्कार मिला या पंच परमेष्ठि ?
ऐसे अनेक बार के मानव-जन्म में हमें कौन मिला ? नमस्कार मिला या पंच परमेष्ठि ? अधिक या कम अथवा पहले या बाद की दृष्टि से भी विचार किया जा सकता है । विचार करने पर लगता है कि ऐसे भवों की संख्या भी अनंत गुनी बीती होगी, जिन में हमें पंचपरमेष्ठि न मिले हों । जब कि पंचपरमेष्ठि मिले हों, ऐसे भवों की संख्या तो कदाचित पूर्व के अनंत की तुलना में अनंतवे भाग की ही रही होगी; परन्तु मान भी लो कि अरिहंतादि पंचपरमेष्ठि मिले भी परन्तु हम उन्हें नमस्कार भी न कर सके तो वे मिले तो भी क्या अर्थ ? थाली में परोसा हुआ भोजन सामने आए खाद्य सामग्री प्राप्त भी हो, परन्तु एक कवा भी यदि न खाया हो तो उस भोजन की प्राप्ति किस प्रयोजन की ? बिना खाए पेट कहाँ से भरेगा? इसी प्रकार नमस्कार के बिना पंचपरमेष्ठियों का मिलना भी हुआ तब भी उसका फल कैसे प्राप्त हो सकता है ? अतः अभी विचार करते हैं कि क्या हुआ ? क्या हुआ था ? क्या नमस्कार अधिक बार अधिक भवों में मिला था ? या पंच परमेष्ठि भगवंत अधिक बार मिले थे - ऐसा भी मान लेते हैं, परन्तु जिस भव में नमस्कार मिला था उसी भव में पंच परमेष्ठि भी मिलें थे या नहीं ? या दोनों ही अलग अलग भवों में मिले थे ? क्या हुआ था ? क्या कुछ जन्म विशेष में नमस्कार प्राप्त हुआ था और बादके जन्म विशेष में पंच परमेष्ठि मिले थे। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस जन्म में नमस्कार भाव ही जागृत न हुआ था क्या नमस्कार की भावना ही न जगी थी ? हाँ, ऐसे भी अनेक भव हुए हैं । अनंत भूतकाल में ऐसे अनेक भव हुए हों - इस में जरा भी आश्चर्य नहीं लगता ।
जिन भवों में नमस्कार प्राप्त हुआ था और अरिहंतादि पंचपरमेष्ठि नहीं मिले थे, तो उन जन्मों में नमस्कार प्राप्त करके भी हमने क्या किया ? हमने किन्हें नमस्कार किया ? ये और ऐसे ही नमस्कारों से क्या लाभ हुआ? क्या उनसे कर्मनिर्जरा हुई ? अथवा ऊपर से कर्मबंध हुए ? क्यों कि पंच परमेष्ठियों के बिना