________________
तब मनोभाव आत्मिक कहलाएगा । आत्मा का भाव नमोभाव प्रधान बनेगा इसीलिये नवकार महामंत्र में 'नवकार अरिहंताणं' या 'नमस्कार अरिहंताणं' नहीं कहा गया है, बल्कि णमो (नमो) अरिहंताणं कहा गया है । यहाँ णमो (नमो) इसका अर्थ यह है कि अरिहंतो को मात्र नमस्कार ही करते न रहो, परन्तु उससे भी आगे बढकर अरिहंतो के प्रति नमोभाव प्रकट हो जाना चाहिये । आत्मिक नमोभाव लाभदायी है । पूज्य भाव, सद्भावादि जो है वे सभी नमो भाव में हैं । ऐसा नमस्कार हमें लाना है.......
इस प्रकार नमस्कार को ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप-वीर्य और उपयोग आत्मगुणयुक्त कहा हैं, इसलिये नमस्कार भी आत्म गुण हैं, आत्माधीन है, जीव विपाकी गुण है, चेतनगुण है, चेतनाशक्ति है, अतः उस गुण का आधार गुणी आत्मा शाश्वत है - नित्य है तो फिर उसके आश्रय पर रहने वाला नमस्कार गुण भी शाश्वत ही होता है - और है भी । मात्र काल के साथ मिलकर वह आत्मा के साथ चले वही उपयोगी है।
काल के साथ चलता हुआ नमस्कार
___ आत्मा भी अनादि अनंत काल से इस संसार में है, नमस्कार भी नित्य शाश्वत होने से अनादि अनंत काल से संसार के व्यवहार में प्रचलित रहा है। काल का प्रवाह अनादि अनंत है । काल तत्त्व की भी न आदि है न इसका अंत है । अनादि अनंत द्रव्य अवश्य ही नित्य - शाश्वत रहने वाले हैं और सदैव काल के साथ जुड़े रहेंगे । अनादि - अनंत इस संसार में अनंत जीव चारों ही गतिओं में परिभ्रमण करते ही आए हैं । संसार चक्र में परिभ्रमण करते ही रहे हैं । एक गति से दूसरी गति में, एक भव से दूसरे भव में और एक जन्म से अन्य जन्म धारण करते करते अनंत काल व्यतीत करते ही आए हैं । इन में एक-एक जीव के अनंतानंत भव हुए हैं । जो भूतकाल व्यतीत हुआ है, उसमें आपके और मेरे सभी के अनंतानंत भव बीते हैं ।
जैसा कि चित्र में दिखाया गया है चौदह राजलोक में स्थित असंख्य निगोद के गोले में से एक गोले में जो अनंतजीव रहे हुए हैं, वे जीव निगोद के गोले में भी अनंत भव बिताते हैं और उस गोले में से बाहर निकलकर भी जीव संसार चक्र त्य परिभ्रमण काल में भी अनंत भव बिताते हैं । ये अनंत भव मात्र एक ही गति
65