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________________ रहेगी । काल यदि अनादि, अनंत और शाश्वत है, तो उस काल में रहनेवाला नवकार महामंत्र भी अनादि अनंत और शाश्वत है। तीनों ही काल में नवकार की साधना चलती है, चलती थी और चलती ही रहेगी। इसे रोकने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। मात्र चलती ही है ऐसा नहीं, परन्तु अविरत - अखंड और सतत चलती है। तीनों ही लोक और सभी क्षेत्रों के जीवों की दृष्टि से विचार करें तो स्पष्ट चित्र खडा होगा कि नरक में नवकार चल रहा है । श्रेणिक, कृष्णादि के जीव जो वर्तमान काल में नरक गति में है और वहाँ वे नवकार महामंत्र गिन रहे हैं, उनकी साधना वहाँ चल रही है। स्वर्ग में देवतागण नवकार की साधना कर रहे हैं । इसी प्रकार ति लोक में ढाई द्वीप के १५ कर्मभूमिक्षेत्र में भी सेंकडों नर-नारी नवकार की सतत आराधना कर रहे हैं। इस प्रकार कालिक दृष्टि के साथ साथ क्षेत्रीय दृष्टि मिलाकर विचार करें तो कालिक - क्षेत्रीय उभय दृष्टि से स्पष्ट स्वरुप में व्यापक रुप से देखने पर ख्याल आ जायेगा कि नवकार की साधना कीतनी व्यापक है । समस्त चौदह राजलोक के सर्वक्षेत्र और सर्वकाल का व्यापक दृष्टि से विचार करें तब भी स्पष्ट रुप से समझ में आएगा कि एक दिन तो क्या, परन्तु एक घंटे का भी अवरोध या भंग नवकार की साधना में संभव नहीं है। छठे आरे में धर्म लुप्त हो जाता है, धर्म रहता ही नहीं हैं, तब प्रश्न होता है कि नवकार कि गणना कहाँ से संभव हो सकती है ? बात तो ठीक ही है। आपका यह प्रश्न यथार्थ ही है, परन्तु हम मात्र अपने भरत क्षेत्र की दृष्टि से ही तो चर्चा नहीं कर रहे है। दृष्टि को व्यापक बनाने की आवश्यकता है। चौदह राजलोक के तीनों ही लोक और ढाई द्वीप तथा महाविदेह क्षेत्रादि सभी क्षेत्रों की व्यापक दृष्टि से विचार करोगे तो बात स्पष्ट हो जाएगी, और तभी नवकार महामंत्र की सर्व व्यापकता समझ में आएगी । महाविदेह क्षेत्र में काल शाश्वत है। वहाँ सदैव चौथा आरा ही प्रवर्तित रहता है । अपने यहाँ भरतक्षेत्र में काल भी परिवर्तनशील है, आरे बदलते रहते हैं, जब कि पाँचो ही महाविदेह क्षेत्र में काल अपरिवर्तनशील है। वहाँ आरे (काल) कभी भी बदलते नहीं, सदाकाल नित्य-शाश्वत स्वरुप में चौथा आरा ही होता है, अर्थात् अपने यहाँ भरतक्षेत्र में जैसा चौथा आरा होता है, वैसा ही काल वहाँ सदैव रहता है, अतः वहाँ धर्म भी सदा-नित्य-शाश्वत होता है। धर्मप्रवर्तक, धर्मसंस्थापक तीर्थंकर भगवंत आदि भी वहाँ सदा-शाश्वत होते हैं। इतना सब कुछ सदा शाश्वत हो तो फिर मोक्ष और मोक्षप्राप्ति भी महाविदेह में सदा-नित्य शाश्वत होते है और यदि काल
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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